हे प्रबुद्ध मानव तू इतना निष्ठुर और कठोर कैसे
उसे ही खत्म करने पर आमादा, जो जीवन रक्षक
जीवन साथी बना रहा तुम्हारा, जन्म से मरण तक ,
तुम्हें ऐसा करने से रोकने के लिए कानूनी प्रतिबन्ध ?
मैं पेड़ तुमसे पूछे रहा, क्यों जब तब कुल्हाड़ी और
रस्सी लिए मुझे काटने चले आते हो, गुनाह तो बता
बिन मांगे हमने तुम्हें वह सब कुछ दिया जो पास था
तुम्हारे सहायक बन, वातावरण नियंत्रित कर, शुद्ध-
जल, वायु, फल, फूल, छाया देते रहे और अन्त के
बाद अपना शरीर, तुम्हारी सुख सुविधा का सामान
बनाने, तुम्हारे अन्त के बाद तुम्हें ले जाने, जलाने में ।
जब हम न रहेंगे, बहुत पछताओगे, सब खो चुके होगे
न आक्सीजन, न प्राण, पृथ्वी इतनी गर्म हो जाएगी
कि न भोजन, न पानी, जीवन विहीन पृथ्वी हो जाएगी ।
जागो हे मानव जागो, बीत रहा समय है, अब तो जागो ।