मेरे बदलने पर शहर भी मुझे बदला हुआ प्रतीत होता है, लेकिन गांव आज भी पहले जैसा है। बदलते हुए समय का असर गांव पर कभी नहीं हुआ। मुझे आज भी अपने पिता को दुकान में व्यस्त देखना और मां को दिन के तय घरेलू कार्यों में उलझे हुए देखने पर लगता है, गांव में समय आज भी ठहरा हुआ हैं। गांव के नहीं बदलने से गांव से जुड़ी स्मृति भी उन जगह पर आज भी सुरक्षित है।
शहर से गांव लौटने पर इस बात की खुशी हमेशा मेरे भीतर होती है कि मैं उन जगह पर जाकर कभी भी एक गहरी लंबी सांस लेकर अपना अतीत फिर पूरे आंनद के साथ जी सकता हूं। असल में मेरी स्मृति गांव के किसी एक जगह से नहीं जुड़ी हैं। मैं आज भी उम्र बदलने के बाद एकांत में बैठने की जगह बदल देता हूं और नया ठिकाना चुन लेता हूं। ऐसा करना ठीक वैसा है जैसे कई लोग चोरी के डर से अपने पैसे एक जगह पर नहीं रखते। आज जितनी मेरी उम्र है उतने ही गांव में खास जगह है। हर उम्र की स्मृति उस जगह पर समाहित है। अगर मुझे बचपन में लौटना होता हूं तब मैं नहर किनारे बैठने चल देता हूं। आज भी मुझे उस जगह पर बैठने से 20 साल पहले महसूस की हुई खुशबू मिलती है।
अपनी हर उम्र को अपनी खास जगह पर जाकर पूरी शिद्दत से जी लेता हूं। अब इस उम्र में मैंने ऐसी जगह चुन लिया हैं जहां पूरा गांव एक नजर में देख सकता हूं। इसमें बदलती हुई उम्र और छूटी हुई स्मृति मुझे साफ नजर आती है।