अक्सर मेरे निजी दोस्त कहते है मुझे दिमाग से बात करना चाहिए लेकिन यह मुझसे कभी हुआ ही नहीं। अपने सभी प्रयासों में असफल रहा हूं। अब हर लोगों से दिल से बात करना आदत में शामिल है। इस वजह से कई बार ठगा हुआ भी महसूस करता हूँ। दिल से बात करने में पूरी ईमानदारी शामिल होती है। दिल से बात करने के अपने अलग नियम है, यह नियम दिमाग से बातचीत में लागू नहीं होते। एक सच यह भी जब भी किसी से मैंने बेहद दिल से बात किया..मैंने खुद को 'प्रेम में होना' पाया है। मेरी हमेशा से एक आदत रही है..जब भी मुझे प्रेम हुआ है, मैं उसके नाम का पहला अक्षर अपने हाथों की हथेली में खोजने लगता हूं। आपको आश्चर्य होगा हाथों की कई लकीरों के बीच मुझे वह पहला अक्षर मिल ही जाता है, लेकिन जब भी इसे दिखाने अपना हाथ उस व्यक्ति की ओर आगे बढ़ाता हूं वह अक्षर हाथों में होकर भी उसे नजर नहीं आता।
मैं उसे कभी बता ही नहीं पाया की तुम्हारा नाम का पहल अक्षर मेरे हाथ में है। यह बहुत पहले से मेरे हाथों में गुदा हुआ था, लेकिन तुमसे मिलने के बाद इसे अपने हाथों में देखा है। इसे एक तरह का पागलपन भी समझता हूं। एक सच यह भी कुछ अक्षरों ने बदलते समय के साथ अपने रूप भी बदल दिए है कभी हाथों में अग्रेजी का 'ए' शब्द नजर आता था अब उसमें ‘एम' शब्द की आकृति बनी हुई दिखाई पड़ती। यह केवल मुझे अपनी आंखो से दिखाई पड़ता है। इसके अपने अलग राज है, जो दिलों से जुड़े है।