जहन में एक गांव रहता है
जिसमें न बिजली थी
न अस्पताल था
न पाठशाला थी
न रेल गाड़ियों की
आवाजाही
न बसों की खीच पुकार
उस गांव में वृक्ष रहते थे
अपने मित्रों और रिश्तेदारों के साथ
एक बंबा था
थे उसी से जुड़े कई एक कूल किनारे
उस गांव का लोक जीवन
भ्रमित नहीं था
वह लालित्य में फलित था
हरियाली तीज
ले आई वहीं से पुरवा हवा
आज मेरी खिड़की में।
कल्पना मनोरमा