*भारतीय संस्कृति के अनुसार यदि किसी गृहस्थ के निवास पर रोग, शोक के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से अतिथि के रूप में 7 दिन से अधिक निवास किया हो और गृहस्थ ने अतिथि का आदर सत्कार हृदय से किया हो तो उस परिवार की रक्षा, सुरक्षा औऱ विकास में यथा संभव सहभागिता का निर्वहन अतिथि का दायित्व बन जाता है. यह कर्म आंशिक रूप से किराये के घर में रहने पर भी प्रभावशील होता है.*