पालन-पोषण, नौकरी, शिक्षा,शादी,दाम ।
इतनी सारी खूबियाँ ,सिर्फ पिता के नाम ।।-1
आती है परिवार में , हँसी-खुशी मुस्कान ।
खान-पान सम्मान भी,अब्बा का अवदान ।।-2
जब से सिर पर रख दिया, बाबूजी ने हाथ ।
हँसी-ख़ुशी से रह रहीं,--खुशियाँ मेरे साथ ।।-3
चाहे कितनी दूर हो, दिन हो या फिर रात ।
वहीं पिता को दीखते, घर के सब हालात ।।-4
थके पिता भी बाँटते , प्रेम हर्ष मुस्कान ।
जीवन के इस खेल का,अब हो पाया ज्ञान ।।-5
साहस,इज्जत,बल यथा,शान,ज्ञान,सम्मान ।
सुत के लिखी वजूद की,दुनिया में पहचान ।।-6
आफत या मजबूरियां, रोक सकी ना पाँव ।
चले पिताजी याद में,--- बच्चों वाले गाँव ।।-7
बच्चों हित दुख दर्द को, रहे पिताजी झेल ।
संकट आता देखकर,-- गए मौत से खेल ।।-8
तुम ही छत दीवार हो,तुम ही पालनहार ।
बापू के सिर पर रहे, घर का सारा भार ।।-9
ढोते घर के भार को , --उम्र हुई लाचार ।
वही पिता माँ हो गए,अब तो घर पर भार ।।-10
घर के सुख के वास्ते, कर दी जान निसार ।
वही वृद्ध सन्तान को, लगते सिर का भार ।।-11
बटवारे ने कर दिया, ऐसा बंटाधार ।
दो हिसों में बट गए,मात-पिता लाचार ।।-12
माता घर की नींव है, बापू छत दीवार ।
इनके कन्धों पर टिका ,घर का सारा भार ।।-13
माता का शृंगार है , घर का पालनहार ।
'दीपक' जगत प्रणम्य है,पूज्य पिता साकार ।।-14
शिल्पकार करता रहे,मूरत को साकार ।
वैसा अनुशासन भरा, बापू तेरा प्यार ।।-15
शिव कुमार 'दीपक'