हाअब संभलने लगी हूँ में ....
तेरे वादों ने जो तोड़ा था मुजे ....
तेरी ही यादो से अब संभलने लगी हूँ में ....
प्यार में साथी के साथ वक्त कैसे कटता था पता है मुजे ....
पर अब साथी के बिना प्यार कैसे होता है ;
अब जानने लगी हूँ में ....
अब खुद से ही और प्यार करने लगी हूँ में ....
क्योंकि अब कही न कहीं तू भी तो बसता है मुजमे ...
तेरी तो जैसे आदत ही हो गई ही है मुजे ...
और तुने तो मेरी आदत को बहोत बिगाड़ा भी तो है ....
पर अब तेरी यादों की आदत के साथ जीने लगी हूँ में ...
तेरी यादो के साथ रहने लगी हूँ में ....
हा अब संभलने लगी हूँ में ....
Dr.Divya...