शीर्षक:- "लोकतांत्रिक दाना"

अपेक्षा से अलग भी होते हैं कुछ पंछी,
केवल अपनी ही दिनचर्या मै मस्त-मगन।
सुबह होते ही निकले,घोसले से बाहर हुए,
शाम ढलने तलक घोसले के अंदर हो लिए।
उनका सबसे ज़रूरी काम शायद ये कि,
घोसले में बच्चों के लिए दाना मिल जाए,
कम से कम तब तक,जब तक कि बच्चा,
कल को उन दानों को खूद भी न ले आए।
जिसके लिए ज़रूरी है उनको सीखाना ,
उड़ना,चुनना,चुगना,छीनना,झपटना आदि।
कुछ सीख लेते हैं ये सब जीवन की कलाएं,
कुछ सीख लेते हैं,कुछ नहीं सीख पाते।
लेकिन "दाना" सबको लाना ही होता है,
चुन के,चुग के,छीन के, झपट के, जैसे भी हो,
और ये सब लगातार चलता ही रहता है।

दरअसल ये भी हिस्से हैं उस विचारधारा के
जिसे सभ्य लोग "लोकतंत्र" कहते हैं।
छिनना,नोचना,झपटना,चुगना,चुनना
ये सब लगातार चलता रहता है,
क्योंकि "दाना" तो 'सब' को लाना होता है!
..रॉयल..

Hindi Poem by त्रिपाठी_राइट्स : 111640901
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now