गुजरे हुए रास्ते से आज फिर से गुजरे है ....
टूटे हुए ख़्वाब जहाँ बिखरे पड़े है ....
दिल चाहता है फिर से समेटलु वो ख़्वाब सारे ...
थामलू फिर से वो सारे जज्बातों का आँचल ....
वो ख़्वाब वो जज्बातों के बीच ही तो कहीं ज़िन्दगी बिखरी पड़ी है मेरी ....
शायद उन्हें समेटते समेटते कहीं ज़िंदगी भी समेट जाए खुद ....
उन ख़्वाबो और जज्बातो का आईना है जिंदगी मेरी ....
समेट पाऊ या न समेट पाऊ ....
बस थोड़ी देर उस रास्ते पे थमजा तू जरा ये जिंदगी ....
Dr.Divya