रचना
बच्ची है नन्हीं सी, सुंदर है परियों सी
जिस दिन से भूखी है, वो चौदह नवम्बर थी
थोड़े चावल इक रोटी, बस इतना कहती
एक रंग की इक रोटी, तो तीन तिरंगे की
क्या होती आज़ादी, वो मुझ से है कहती
बच्ची है नन्हीं सी
थोड़ा थोड़ा रोज़ मरे, पर जीना है कहती
गोद में खेले वो मेरी, दुनिया सपनों की
क्या ज़िंदा रहूंगी मैं, वो मुझ से है कहती
क्या ज़िंदा रहूंगी मैं, वो हम से है कहती
बच्ची है नन्हीं सी
विनय महाजन