*"क्या फर्क पड़ता है?!"*
आज कल नाराज़ है वो मुझसे,
हा गलती मेरी थी,
पर उससे क्या फर्क पड़ता है?!
सभीको खुश करने में लगी रहती है,
फिर चाहे कोई उसे खुश करे या नही,
पर क्या फर्क पड़ता है ?!
सबके साथ घुलमिल के रहती है,
पर अंदर से अकेली रह जाए,
क्या फर्क पड़ता है ?!
सबके सामने तो हँसती रहती है,
पर अकेले में रो देती है,
पर क्या फर्क पड़ता है ?!
हमारे हिसाब से ही रहना होगा उसे यहाँ,
अपने पापा के घर कितने दुलारसे रही हो,
क्या फर्क पड़ता है ?!
लाख नखरे पूरे होते थे जिसके मायकेमें,
आज वो एक फरमाइश तक नही करती,
क्या फर्क पड़ता है ?!
मेरा तो सबकुछ है वैसे का वैसा,
उसकी दुनिया बदल गई,
पर क्या फर्क पड़ता है?!
मेरे तो सब आज भी मेरे पास है,
वो सब अपना छोड़के आ गई,
पर मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
सर रखके सो जाता हूं में अपनी माँ के पास,
उसे कभी अपने माँ पापा की याद आ जाये,
उसे मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
मेरे तो सब यही थे यही है,
मायके की याद में उसकी आंखें गीली हो जाये,
मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
मेरे लिए सजती है संवरती है,
हा में कभी उसे नही निहारता,
अरे क्या फर्क पड़ता है ?!
मेरी खुशी के लिए कितना कुछ करती है,
और में उसकी वो खुशी पलभर में मिटा देता हूं,
क्या फर्क पड़ता है ?!
में तो नही सुधरने वाला ये तय है,
वो चाहे कितनी बार अपनी कसम दे दे,
मुजे क्या फर्क पड़ता है?!
सबके सामने तो मुझसे बात करती है ना,
अकेलेमें फिर चाहे कितने दिन नाराज़ रह ले,
मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
मेरी नादुरस्ती पे वो सो नही पाती रातभर,
और उसकी सिसकियाँ सिरहानेमें ही छुप जाए,
क्या फर्क पड़ता है ?!
नाराज़ होती है मुझसे मेरी गलती पर,
पर में क्यों मनाउँ उसे,
मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
मुँह फेरके सो जाता हूं में अपनी मर्ज़ी से
वो प्यार की एक नजरके लिए तरसती है,
पर मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
में बिना हाल पूछे ही खा लेता हु अकेला,
देर रात तक वो इंतेज़ार करती थी मेरा बिना खाये,
पर मुजे क्या फर्क पड़ता है?!
अच्छे से जानता हूं उसकी शरारतों को,
वो गुमसुम सी हो जाये
मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
हर बार वादा करके तोड़ देता हूं में,
उन वादों के साथ वो भी टूट जाये,
पर मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
भरोसा तोड़ता हूँ बड़ी बेरहमी उसका,
वो कतरा कतरा बिखर जाए,
पर मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
मोम से पिघलने वाली वो,
मेरी वजह से पत्थर सी बन जाये,
पर मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
जो सबके दिल जीत लेती थी,
वो खुद से ही हार जाए,
मुजे क्या फर्क पड़ता है?!
मेरे लिए जान छिड़कने वाली,
खुद बेजान बन जाये,
मुजे क्या फर्क पड़ता है ?!
*क्या फर्क पड़ता है?!*
- श्रुति पटेल