आजकल
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"मैं क्या कर रहा हूँ ?
आज कल?
यही आपका पूछना है ना?"
"क्या बताऊँ मैं?
क्या कर रहा हूँ मैं?
आज कल?
कुछ पता नहीं है।
असमंजस में हूँ।
कि मैं क्या कर रहा हूँ
आज कल?
मुझे हो क्या गया है?
कुछ कह नहीं पाता।
आज कल ।
खुद मैं खुद से प्रश्न कर रहा हूँ।
आखिर मैं क्या कर रहा हूँ?
किधर जा रहा हूँ?
किस लिए?
आखिर क्या है ?
फिर खुद मैं इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाता।
आखिर क्यूँ?
मेरा मन बिना उत्तर पाये
उदास होकर मुझ में
कहीं जाकर छुप जाता है।
आज कल ।
फिर वहीं मैं बैठा होता हूँ।
बेमन से।
बेवजह,
एक वजह की आस में ।
जो मुझे मिले।
और मैं तत्क्षण उत्तर दूँ
कि मैं क्या कर रहा हूँ?
आज कल?
विक्षिप्तता मुझ पर हावी है।
खुद के प्रश्नों के घेरे में
खुद को खड़ा पता हूँ।
भयभीत हूँ मैं।
अनायास ही उठ रहे प्रश्नों से।
इन प्रश्नों के उत्तरों की खोज में
अपने आपको खोया पाता हूँ।
आज कल।
एक धन-धनाता उत्तर दूँ।
जो गोली की तरह हो।
जो प्रश्नों के सीने को
छलनी करता आरपार हो जाये।
मैं भी सार्थक प्रश्न की तलाश में
बैठा हूँ अकेला।
आज कल।
एक ऐसा प्रश्न जो मैं प्रश्नकर्ता से करू?
प्रश्नकर्त्ता स्वयं खुद से प्रश्न करने लगे।
आज कल।
-दीपेश कामडी 'अनीस'