वादों में विवाद
साहित्य के सारे वादों में विवाद हो गया।
आदर्शवाद तन गया गाने लगा तराना।
"मैं हूँ सबसे पुराना, मेरा महत्त्व सभी ने माना।
"काम है मेरा मानव को सदाचार सीखना।
सही रास्ता दिखाना, नेकी पर चलाना।"
तुनककर बोला यथार्थवाद:
"चल हट जाना, तेरा काम केवल भरमाना।"
मैं हूँ जाना पहचाना,
काम है मेरा जो है वह दिखाना।
मानव को समाज की साफ छबी बताना।
वास्तविकता दिखाकर, आँखें खोलना।
मानव को अपने पैर जमाना।
उड़ते पैरों को जमीं पर लाना।"
मार्क्सवाद डंके की चोट पर कहने लगा।
"काम है मेरा अमीरी-गरीबी का भेद मिटाना।
सबको मिले एक समान रोटी कपड़ा और मकान।
गरीबों का हाथ थामा, लूट की बंद हो दुकान।"
मनोविश्लेषण वाद ने अपना रहस्य खोला और बोला:
"बाताओ तो जरा, मैं भी तो सुनु
मन का मर्म किसने जाना?
मानव मन ही है मूल।
गूँथा मेरे ही आसपास ताना-बाना।
कैसे गये मुझे भूल?"
सारे वाद प्रतीकवाद, बिम्बवाद,
विखंडनावाद, अनुआधुनिकता, प्रयोगवाद
वादों के बीच का विवाद बना बड़ा फसाद।
क्या देशी क्या विदेशी
भला कैसे वादों को समझाना।
कोई कवि नहीं चाहता आफत मोल लेना।
आ गए कई वाद लेकर सेना।
दुनिया का नहीं बचा कोई कोना।
काम था सबका अपना अपना।
चीटी की तरह चिपक गए, लगे रस चूसने।
कवि बेचारा डूबा गहरे अवसाद।
सुनाई न दी उसे कविता की नाद।
देती थी जो सदा ही भावक को आह्लाद।
-दीपेश कामडी 'अनीस'