एक अरसा हो गया उन शीत हवाओं में घूमे हुए ।
उन धुंध राहो से बहुत कादिम पहचान है ,
इतने समय के बाद, हम आज भी उनको याद हैं ।
यह तो हमारे लिए उनका सम्मान है ।
कोई कर्ज़ा नहीं है उनसे हमारा, न उनके रिश्तेदार हैं हम,
वहां के शजर जो दुःख हरण का मरहम बेचते हैं ,
बस उसके पुराने खरीददार हैं हम ।
अर्सों बाद अब जब उन् राहों से गुज़रते हैं,
तो गुज़रा अवाम महसूस होता है,
वहां अपनी मौजूदगी के अलावा,
उस अवाम का कोहराम महसूस होता है ।
बरखा-रुत की सियाह रातों में , मैं भटकता हुआ न जाने,
कैसे उन् सजल पेड़ों के झुरमुट में आ गया ,की रात भी वहीं गुज़ारी थी |
पता नहीं ऐसा क्या आकर्षण था उन् पेड़ों में,
या किस्मत की कोई अय्यारी थी ।
शायद हमारी तरह वो अवाम भी ,
बरखा रुत की सियाह रात में इन् सजल पेड़ों के झुरमुट में आ गया ,
और रात भी वहीं गुज़ारी हो ।
पता नहीं उसे भी पेड़ों का आकर्षण लाया ,
या शायद उसकी भी किस्मत की कोई अय्यारी हो ।
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