"राहत इंदौरी"
घुलमिल गया हे एक अनमोल सितारा,
अपनी रियासतों के घने आगोश में,
नहीं रहीं है अब शब्दों की हिस्सेदारी,
नाराज़ हो गया हे लब्जो का कारवां,
जा चुके हो दूर किसी जन्नत की ओर,
सुना छोड़ गए हो ये मुशायरे का जहान,
फिर कहीं से वापस लौट आओ "इंदौरी",
और दे दो हमें किसी महेफिल की "राहत".
ले. निरव लहेरु(गर्भित)
ता. ११/०८/२०२०