स्त्रियों की दिशा.
कुछ जोंकें ऐसी होती हैँ जो सिर्फ स्त्रियों के पेट मे पलती हैँ, पुरुषों में नहीं पायी जातीं. हाँ हाँ जोंक जो पिले रंग की होती है मल द्वार से निकलती हैँ. हाँ जी, मैंने उन्हें देखा है.
औरतों के अंदर रह के उनका खून चुस्ती रहती हैँ, मगर ये वो जोंक नहीं है जो सतह पर एक लिब्बी की तरह घींसट-घींसट के चलती है, और पेट से बाहर आने पर इनका वज़ूद ख़त्म हो जाता है. ये वो जोंकें हैँ जो पेट से बाहर आने पर वज़ूद मे आती हैँ. और फिर एक किल्ली बन जाती हैँ उनकी चमड़ी से चिपक जाती हैँ और फिर उनका खून चूसने लगती हैँ. सब जोंकें एक सी नहीं होतीं बहुत जोंकें बहुत अच्छी भी होती हैँ, जो आगे चल कर, औरतों का हर बुरे भले वक़्त मे, उनके साथ खड़ी रहती हैँ उनको समझती हैँ उनकी भावनाओं की कदर करती हैँ, जिनकी वजह से औरतों का सहज़ मन जीवित रहता है... लेकिन ये जोंक एक किल्ली बनके स्त्रियों की चमड़ी से खून चूस के बड़ी हो के एक कुत्ते का रूप ले लेती है और उन ही पर भौंकने लगती है, उनकी दशा उनकी दिशा पर निर्देश देने लगती है उनके शोषण वोषण की बातें करने लग जाती है, एक आदमखोर कुत्ता जो कभी वफ़ादार नहीं होता. ये कुत्ते उन्हीं औरतों को जिंदगी भर नोंचते रहते हैँ उन्हें खाते रहते हैँ.
अब मैं लिखने मे सक्छम नहीं हूं इसलिए नहीं की मुझे लिखना नहीं आ रहा, बल्कि इसलिए की मेरे हाँथ काँप रहे हैँ.
उन जोंकों को स्त्रियों के शरीर मे या उससे बाहर आते ही मसल देना चाहिए जैसे मटर के दाने निकालते वक़्त उसमे लगी जोंक खुद ही हाँथ से मसल जाती है और एक घिन सी आने लगती है.