जब कन्हैया गोकुल से मथुरा की और चल पड़े थे। यमुना के किनारे, कदम्ब वृक्ष के निचे आँसूभरे आंखोंसे राधा उनको विदा कर रही थी। बोलने के लिए होटोंसे एक भी शब्द, ना कन्हैया कह पाए, ना राधा। राधा की भावविभोर आंखोंसे कान्हा पढ़ पाया।
"कान्हा, प्रेम में वियोग क्यों आता है? क्या नाता है उनका?"
कन्हैया ने कहा, " राधा, प्रेम ही अंतिम योग है। अंतिम मिलन है।"
"कान्हा, तुम्हारे बिना आधा अधूरासा ये जीवन, अब सिर्फ तुम्हारी प्रतीक्षा में ही रहेगा। जीवन के अंत तक, मोक्ष तक। "
"राधा के बिना तो कृष्ण का जीवन भी अपूर्ण है,आधा है।"
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