Hindi Quote in Shayri by Lovelesh Dutt

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एक ग़ज़ल

खिलखिलाता खेलता बचपन नहीं है
शहर में अब कोई भी उपवन नहीं है

आधुनिक होने लगी शब्दावली भी
'हाय' 'हैलो' है मगर वंदन नहीं है

धूप कैसे खेल पाएगी यहाँ पर
जब किसी के घर में ही आँगन नहीं है

आदमी ने खूब कर ली है तरक्की
पर दिलों में अब वो अपनापन नहीं है

नीम पीपल आम पाकड़ झूमते थे
पहले जैसा अब कहीं सावन नहीं है

जाने कैसी चल पड़ी हैं ये हवाएँ
अब किसी मौसम में परिवर्तन नहीं है

हर तरह की दूरियाँ अब मिट चुकी हैं
दिल में फिर भी प्यार की धड़कन नहीं है

लवलेश दत्त
बरेली

Hindi Shayri by Lovelesh Dutt : 111519061
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