Hindi Quote in Poem by jaydev singh

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स्त्री का शरीर
मुझे क्यों इतना घूरते हो मैं भी उसी चमड़ी की हूं,
मेरे पास भी वो ही हड्डी खाल हैं
चेहरा है और बाल हैं
बस मैं स्त्री रूप में जानी जाती हूं
और तू पुरूष में
मैं कभी अभागी नहीं
मैं हिम्मत हूं इसलिए स्त्री के रूप में हूं
बस थोड़ा बहुत ही फर्क है हम दोनों में
थोड़ा ऊपर उभार का है फर्क
जिसे तुम घुरा करते हो
जैसे कोई घात लगाए बाज़ देख रहा हो
और जेहन में नोच रहा हो
कमर के नीचे स्त्री का जन्म जनानंग है
यह कोई वासना का प्राय नहीं ये एक अंग है, याद रखना
मैं माता रूप में तेरी जननी रही हूं, तेरे कर्तव्यों की करनी रही हूं
मुझे हर बात का होश है,
भले ही मुझे लिंग दोष है,
मैं सिर्फ वासना तृप्त नहीं
मैं प्रेम के भौगोलिक रूप में
मैं आदर्श सूर्य के धूप में स्त्री हूं
जिसे तुम इतना घूरा करते हो।
जिसे नोचने को आतुर हो जाते हो
भूल जाते हो की इसी रूप का ही अंश हो
कालांतर में विभांतर में
हर युग के समांतर में
भोग तो तृप्त होने के लिए है
पर मन का सुंदर जोग कृप्त होने के लिए है
इसलिए...ग़लत नज़रों से इतना ना घूरो
मुझे मुझ स्त्री को देखो समझो
पर गलत इरादे लिए नहीं
बस इतना ना घूरो इतना ना घूरो मुझे

Hindi Poem by jaydev singh : 111499272
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