Kavita Verma लिखित उपन्यास "देह की दहलीज पर" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें
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कमरे में चाय का खाली कप, मुचड़ा पड़ा बिस्तर कामिनी को मुँह चिढ़ा रहे थे।उसने जल्दी-जल्दी सब कुछ समेटा तब तक कांता सफाई करने आ गई। उसके जाने के बाद कामिनी बाथरूम में घुस गई। कल रात से अब तक कई गुना बढ़ चुकी बेचैनी आंखों के रास्ते बाहर निकल पड़ने को हुई जिसे उसने रोकने की कोशिश भी नहीं की और उसे शावर के साथ बहा दिया। मन तो उसका बुक्का फाड़कर रोने का हो रहा था लेकिन कहीं आवाज बाहर न चली जाए। इतने लंबे समय से अपने अंदर जतन से छुपाई इस बेचैनी को सबके सामने खासकर बच्चों के सामने आ जाने की शर्म ने उसे कुशल अभिनेत्री बना दिया था। बच्चे क्या वह तो मुकुल के सामने भी सामान्य रहने की ही कोशिश करती है। अभी तो वह खुद ही इस बदलाव के कारण को नहीं समझ पाई है, और न ही समझ पा रही है कि इसका सामना कैसे करें ? ऐसे में सब समझने की कोशिश करते सामान्य दिखना ही एक उपाय है