काम की कमी महंगाई की मार।
तेल की आग करंट का झटका।
जीवन की गाड़ी चले तिरछी आड़ी।
बंदे को कैसे औंधे मुंह पटका।।
पेट काटा स्वाद लूटा रस छूटा।
भोजन की थाली में कुछ चटका।।
ऐसे वैसे जैसे तैसे भी पैसा मिले।
सारा का सारा सरकार ने गटका।।
सड़क पे नाका जेब पे है डाका।
सवारी को क्यूं मझधार में पटका।।
खाने में पाबंदी मयखाने में आनंदी।
भरेगा कभी तो कोरोना का मटका।।
कूलर का गर्म पानी पंखे का फर।
काम कैसे करे बिजली का खटका।।
भूल चिकन मीट बन शाकाहारी।
भाई रोज रोज क्यों लाना झटका।।
रेल मिली न लारी कोरोना है शिकारी।
सब जगत आवागमन में है भटका।।
कहै सोहल खर्चा कम कर ले; वरना।
आसमान से गिरा खजूर में अटका।।
गुरदीप सिंह सोहल
हनुमानगढ़ जंक्शन (राजस्थान)