बचपन में मेरे आती वो चिड़िया,
बनाने अपना घोंसला
तिनके बीन कर ले जाती मेरे घर से,
कभी खेतो से आयी गेहूं की बाली
तो कभी झाड़ू से उसने सींक निकाली
देखती दूर से हम सबको चुन चुं कर दाने,
चाहा था दबे पांव जाकर पकड़ना मैंने भी
पर वो थी कि, घोंसले में फुर्र से उड़ जाती,
मेरे हाथ कभी ना आती
मेरी ललचाई नज़रों से नहीं कभी घबराई
पर ना जाने क्यों एक दिन, वो शरमाई
और चली गई जहां से वो थी आई
निकली वो बड़ी हरजाई
मै रो- रोकर हुआ बेहाल
काम पूरा होने पर हरएक को होता है जाना
पर मम्मी ने ये बात थी समझाई,
फिर एक दिन मिला उसका घोंसला,
मेरे घर की दीवार के बड़े से छेद में
जिसे मैंने रखा अपनी अलमारी में
उसकी याद में संभाल...
#षणानन
#घोंसला