प्रेम पत्र - लघुकथा -
आज वीरेंद्र पिता की मृत्योपरांत तेरहवीं की औपचारिकतायें संपन्न करने के पश्चात पिताजी के कमरे की अलमारी से पिता के पुराने दस्तावेज निकाल कर कुछ काम के कागजात छाँट रहा था।
तभी उसकी नज़र एक गुलाबी कपड़े की पोटली पर पड़ी।उसने उत्सुकता वश उसे खोल लिया।वह अचंभित हो गया।वह जिस पिता को एक आदर्श और सदाचारी पिता समझता था उनकी चरित्र हीनता का एक दूसरा ही चेहरा आज उसके सामने था।उस पोटली में पिता के नाम लिखे प्रेम पत्र और एक सुंदर सी महिला के साथ तस्वीरें थीं।
वीरेंद्र के चेहरे पर पिता के प्रति क्रोध और घृणा के भाव तेजी से उभर रहे थे।
उसी वक्त वीरेंद्र की माँ ने कक्ष में प्रवेश किया।वीरेंद्र ने पहले तो उस पोटली को छिपाने की असफल कोशिश की लेकिन जब उसे लगा कि माँ ने सबकुछ देख लिया है तो अब सब कुछ उजागर कर देना ही ठीक है।
"माँ,बापू ने हम लोगों के साथ बहुत बड़ा धोखा किया।खासतौर पर तुम्हारे साथ।"
"कैसी ऊलजलूल बात कर रहे हो वीरेंद्र।आज के समय में तुम्हारे पिता जैसा निष्ठावन और कर्तव्य परायण व्यक्ति मिलना मुश्किल ही नहीं असंभव है।"
"आज से पहले मेरी भी सोच यही थी माँ लेकिन आज उनका एक घिनौना रूप मुझे देखने को मिला है।"
"कुछ तो शर्म करो वीरेंद्र।अपने स्वर्गवासी पिता के लिये ये कैसी भाषा प्रयोग कर रहे हो?"
"यह देखो माँ।यह है बापू का असली चेहरा।उनके जीवन में कोई और भी स्त्री थी।"
"यह सच है। लेकिन यह हमारी शादी से पूर्व का सच है।"
"क्या मतलब है आपका माँ?"
"वीरेंद्र, तुम्हारे पिता ने मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाया।वह किसी से प्रेम करते थे लेकिन उन्होंने मुझसे शादी अपने परिवार के दबाव में की थी।उन्होंने यह खत और फोटो शादी की पहली ही रात मुझे दे दिये थे और कहा था कि इन्हें जला देना। मेरे जीवन से यह प्रसंग समाप्त। और वे उस पर कायम भी रहे।"
"पर आपने जलाये क्यों नहीं माँ?"
"मैं इतना साहस कभी भी एकत्र नहीं कर सकी।"
मौलिक लघुकथा