Hindi Quote in Poem by Kuber Mishra

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जटा में गंग की तरंग अर्ध चन्द्र भाल पर !
त्रिनेत्र दृष्टि झाँकती है काल के कपाल पर !!
गले मे माल व्याल की है कोटि सूर्य सम प्रभा !
चिता की भस्म अंग अंग अंक शायिनी विभा !!

हाथ में विशाल शूल दीनबन्धु भूतनाथ !
भूमि पर डटे हुए हैं आशुतोष विश्वनाथ !!
चल रहा सृजन विनास सृष्टि पर गड़ी है दृष्टि !
चर अचर सजीव जीव हो रही कृपा की वृष्टि !!

गगन गगन निनाद गूँज देव देव महादेव !
कर रहे हैं वन्दना प्रकृति मनुष्य दैत्य देव !!
भंग की उमंग संग वृषभ हस्त कन्धरा !
कृपालु चन्द्र शेखरे नमो जगत धुरन्धरा !!

व्याप्त व्योम उच्च भाल पद पखारता है सिन्धु !
सौम्य रूप में विराजमान ईश दीनबन्धु !!
विश्ववास शान्त रूप शम्भु देव शंकरा !
निकृष्ट शक्ति के लिए प्रचण्ड शिव भयंकरा !!

पनप रही बुराइयों का विश्व में प्रबल प्रवाह !
थाम लो त्रिशूल आज भूमि की यही है चाह !!
जगद्गुरुम् कुबेर कर रहा नमन कराल काल !
विश्वनाथ शूल की छटा बिखेर दो विशाल !!

धर्म योद्धा से ---

Kuber Mishra
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Hindi Poem by Kuber Mishra : 111221600
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