डर निष्फलता का नहीं, कर्महीनता का है
राह पर उद्योग करते हुए चलने के उपरांत भी निष्फल लौट आना तकलीफ जरूर देता है किंतु खंडित नहीं होने देता अपितु क्षण-दर-क्षण असफलता के कड़वे घूँट को सफलता के मधुर रस में तब्दील कर देने में सहायक होता है। वहीं दूसरी ओर, बिना कर्म प्राप्त सफलता सुकून नहीं देती। वो सत्य से कोसों दूर महज़ एक तथ्य होता है। प्राणहीन तथ्य, रस-विहीन तथ्य। कुछ ऐसा ही परिणाम कर्महीन असफलता का है। जो पल-पल खंडित करने में अपना योग देती है। मीठे रस के निकल आने से पूर्व ही उसमें विष का सम्मिश्रण कर देती है। बस इसलिए, डर निष्फलता से नही बल्कि कर्महीनता से लगता है और मैं कर्महीनता से बंजर पड़े खेत में कर्म का बीज बोना चाहती हूँ।