रफ्ता रफ्ता यूं गुजरती है जिन्दगी
ज्यों किश्तों किश्तों में क़त्ल हो रहे हैं हम।
पेश ए खिदमत है इक नई नज्म आपकों
कब बात बात में बन गई बस ये न पूछिये।
आगाज ए आशिकी तो कभी जान न पाए
अंजाम ए आशिकी देखे बहुत से हैं।
जिन्दगी में हलचलें तो होती रहेंगीं
मुश्किल ए हालात से लड़ना भी सीखिए।
जब जब भी उनके चेहरे पे मुस्कान सी दीखी
अश्कों का साथ छोड़कर आँखें चमक उठीं।
वो भूलना ही क्या जो कभी याद ना किया
बेवक्त भूलने का हुनर जरा हमसे सीखिए।