*આપણા દેશ ના સૈનિકો વિદેશ મા ભણવા જતા વિદ્યાર્થીઓ તથા પોતાની માતા થી દુર રહેનાર દરેક વ્યક્તિ ને સમર્પિત* ?
"माँ की याद"
अजनबी शहर में अपने घर की
बहुत याद आती है
दुनिया की भीड़ में ‘मेरी माँ’
बहुत याद आती है ।
मुश्किलों के इस सफर की तेज धूप में
जब तन-मन झुलसने लगता है,
तेरे आँचल की वो सुरमई छाँव
बहुत याद आती है ।
दुनिया की भीड़ में ‘मेरी माँ’
बहुत याद आती है ।
पराये देश में अपने हाथों के बने,कच्चे-पक्के खाने में
जब आधे-पेट सोना पड़ता है
तेरे हाथों की बनी ‘कढ़ी’
बहुत याद आती है ।
दुनिया की भीड़ में ‘मेरी माँ’
बहुत याद आती है ।
काम के तनाव में जब रातों को
नींद नहीं आती है,
मेरे बालों की वो तेल-मालिश
और तेरे हाथों की वो नर्म थपकियाँ
बहुत याद आती हैं ।
दुनिया की भीड़ में ‘मेरी माँ’
बहुत याद आती है ।
दुनिया का झूठ,परायों के कठोर शब्द
जब मन को दु:ख पहुँचाते है,
तेरी बातों की वो सांत्वनाएँ
बहुत याद आती हैं ।
दुनिया की भीड़ में ‘मेरी माँ’
बहुत याद आती है ।
कई कई चेहरों वाले
लोगों के दोहरेपन में,
जब मन ठगा जाता है,
तेरे चेहरे की वो ‘प्रांजल’ मुस्कान
बहुत याद आती है ।
दुनिया की भीड़ में ‘मेरी माँ ‘
बहुत याद आती है ।
चलते-चलते इस सफर में
घना अँधेरा जब हौसला
तोड़ने लगता है,
राह दिखाती तेरे प्यार की ‘रोशनी’ बहुत याद आती है ।
दुनिया की भीड़ में ‘मेरी माँ’
बहुत याद आती है ।
अजनबी शहर में अपने घर की
बहुत याद आती है
दुनिया की भीड़ में ‘मेरी माँ’
बहुत याद आती है ।
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