#काव्योत्सव 2.0 #भावना प्रधान #kavyotsav 2.0 #mother 's..day
बहुत मसरूफ हो तुम, समझता हूं
घर, दफ्तर, कारोबार, और थोड़ी फुरसत मिली तो दोस्त यार, जिंदगी पहियो पर भागती है,
ठहर के ये सोचना मुश्किल है कि माँ आज भी तुम्हारे इंतजार में जागती है,
सुनो, आज दो घड़ी बैठो उसके साथ
छेड़ो कोई पुराना किस्सा
पूछो उनसे कोई पुरानी बात
दोहराआे उनके गुजरे जमाने
बजाओ मुहम्मद रफ़ी के गाने
जो करना है आज करो
कल सूरज सिर पे पिघलेगा
तो याद करोगे
की मां से घना को दरख़्त नहीं था
इस पछतावे के साथ कैसे जियोगे
कि वो तुमसे बात करना चाहती थी
और तुम्हारे पास वक्त नहीं था ।।?? #D