???ग़ज़ल???
ये कैसी आग में झुलसा दिया तुमने बहारों को,
धुएँ के नाग काले डस रहे रंगीं नज़ारों को |
अगर नफ़रत मिटाना चाहते हो तुम दिलों से तो,
ये हिन्दू वो मुसलमाँ है मिटा दो ऐसे नारों को |
नई दुल्हन की डोली को शहर की भीड़ में लूटा,
दिया हमने ही रहकर मौन ये साहस कहारों को |
हिफ़ाज़त चाहते हो तो सजग रहना जरूरी है,
न गुजरे सर से पानी बाँध दो पहले किनारों को |
अगर ये चाहते हो तुम चमन में फिर बहार आए,
खिलाकर फूल चाहत के, बुलावा दो बहारों को |
अधूरा इल्म लेकर जो उजालों में रहे कल तक,
वही अब दे रहे हैं आज गाली चाँद - तारों को |
अगर अरमान हैं दिल में भरोसा बाजुओं पे है,
तो दुनिया रोक क्या पायेगी ऐसे जाँ-निसारों को |
हमें है जान से प्यारा ज़मीं का स्वर्ग ये अपना,
न देंगे हम किसी क़ीमत पे जीते जी चिनारों को |
'विजय' तुम वो सुखनवर हो जो पत्थर दिल को पिघला दे,
तुम्हें सुनकर बड़ी राहत मिली हम ग़म के मारों को |
विजय तिवारी, अहमदाबाद
मोबाइल -9427622862