मैं नींव तेरे मकान की
# काव्योत्सव 2
(भावना प्रधान)
मै नींव तेरे मकान की
कभी खुदी कभी चिनी
हिली नहीं वहीं रही
बनी रही बनी रही
मै नींव तेरे मकान की
मैं चाह कभी बनी नहीं
मकान के कंगूरे की
सजाती रही औरों को
अन्धेरे में मैं खुद रही
मै नींव तेरे मकान की
उन पत्तियों-सी पेड़ की
धूप रोक छांह बनी
झुलसी समय चक्र में
पीली बन मैं झड़ चली
मै नींव तेरे मकान की
उस नदी-सी कल-कल बही
प्रेम प्यार लुटा चली
सोख ली दुनिया ने जब
पैरों तले मैं रौन्दी गई
मै नींव तेरे मकान की
तेरे पैरों को ज़मीन दी
तेरे पंखों को उड़ान दी
जब तुझे लगा कि व्यर्थ हूँ
मोक्ष आत्मा-सी हुई
मै नींव तेरे मकान की
संगीता सेठी