माना कि इतना भी कुछ अच्छा नहीं लिखती हूँ..
वही फटे पुराने सपने हे कुछ,उन्ही को फिरसे सिलती हूं..
मोतिया बटोर लू अपने लिए,इतनी मेरी औकात नही है,
वही टूटे फुते से जजबे है कुछ,उन्ही को धागों में पिरोती हूं..
अपने बनाये पिंजरे में रेह कर उसी को आसमान समज़ लिया है..
मे कटे हुवे पंख लगा कर बस यही पे ही उड़ती हूं
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