अपनी विद्वता, पद-प्रतिष्ठा को
आड़े नहीं आने देता कि तुम कहीं
अपनी मासूम, बेबाक छवि को छुपाने लगो
मैं नहीं चाहता कि मेरे आभा-मंडल में
गुम जाए तुम्हारा फितरतन चुलबुलापन
तुम्हें जानकार हौरानी होगी
कि हम लोग बड़े आभाषी लोग हैं
और हम खुद नहीं जानते अपनी वास्तविक छवि
परत-दर-परत उधेड़ते जाओ
फिर भी भेद न पाओगे असल रूप
तुम जिस तरह जी रहे हो दोस्त
बेशक, उस तरह से जीना एक साधना है
बेदर्द मौसमों की मार से बेपरवाह, बिंदास
भोले-भाले सवाल और वैसे ही जवाब
बस इतने से ही तुम सुलझा लेते हो
अखंड विश्व की गूढ़-गुत्थियाँ
बिना विद्वता का दावा किये
यही तुम्हारी ऊर्जा है
यही तुम्हारी ताकत
और यही सरलता मुझे तुम्हारे करीब लाती है......