#Kavyotsav
बुरा वक्त
कुछ दिन बुरे वक्त का ग़र साथ मिल जाता /
कौन है अपना कौन पराया पता चल जाता /
मंडराते है भौरें खिले फूल पर झुण्ड -झुण्ड /
मुरझाये पर जो आता वही हमदम बन जाता /
चन्द दिनों की तन्हाई भी जरुरत है राजेश /
अपनों की अहमियत भी तभी समझ आता /
विरह की आग में जलकर जो निकल आये /
मिलन की तपिश को वो ठंढा नहीं कर पाता /
मंजिल की तलाश में मुझे भटकने दो यारों /
यूँ ही नहीं किसी को, नई राह दिख जाता /