बापू
१) संसार पूजता जिन्हें तिलक, रोली, फूलों के हारों से,
मैं उन्हें पूजता आया हूँ बापू !
अब तक अंगारों से ।
अंगार, विभूषण यह उनका विद्युत पी कर जो आते हैं,
ऊँघती शिखाओं की लौ में चेतना नई भर जाते हैं ।
उनका किरीट, जो कुहा-भंग करते प्रचण्ड हुंकारों से,
रोशनी छिटकती है जग में जिनके शोणित की धारों से ।
झेलते वह्नि के वारों को जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर,
सहते हीं नहीं, दिया करते विष का प्रचंड विष से उत्तर ।
अंगार हार उनका, जिनकी सुन हाँक समय रुक जाता है,
आदेश जिधर का देते हैं, इतिहास उधर झुक जाता है ।
आते जो युग-युग में मिट्टी-का चमत्कार दिखलाने को,
ठोकने पीठ भूमण्डल की नभ-मंडल से टकराने को ।
अंगार हार उनका, जिनके आते ही कह उठता अम्बर,
‘हम स्ववश नहीं तबतक जब तक धरती पर जीवित है यह नर’ ।
अंगार हार उनका कि मृत्यु भी जिनकी आग उगलती है,
सदियों तक जिनकी सही हवा के वक्षस्थल पर जलती है ।
पर तू इन सबसे परे; देख तुझको अंगार लजाते हैं,
मेरे उद्वेलित-ज्वलित गीत सामने नहीं हो पातेबीरब
🙏🏻
- Umakant