“दूर हूँ मैं मजबूर हूँ मैं,
तेरे पास मैं कैसे आऊं माँ...”
पास बिठा कर तू अपने,
हाथो से मुझे खिलाती थी,
जब तक मैं ना खा लेता था,
माँ तू भी ना कहती थी,
चोट मुझे लगती थी,
तेरी आँखे नीर बहती थी,
मैं तो सो जाता था माँ,
पर तुझको नींद ना आती थी,
मुझपे बहुत अहसान है तेरे,
मुझपे बहुत अहसान है तेरे,
कैसे उम्हे भूलाऊं माँ,
दूर हूँ मैं मजबूर हूँ मैं,
तेरे पास मैं कैसे आऊं माँ,
दूर हूँ मैं मजबूर हूँ मैं,
तेरे पास मैं कैसे आऊं माँ....
🥵
- Umakant