कुछ फर्ज निभाना बाकी है
रफ़्तार में तेरे चलने से
कुछ रुठ गए कुछ छूट गए
रुठों को मनाना बाकी है
रोतों को हँसाना बाक़ी है
कुछ रिश्ते बनकर, टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटें-छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाक़ी है
कुछ हसरतें अभी अधूरी है
कुछ काम भी और जरूरी है
जीवन की उलझी पहेली को
पूरा सुलझाना बाकी है
जब सॉसो को थम जाना है
फिर क्या खोना है, क्या पाना है
पर मन के ज़िद्दी बच्चे को
यह बात बताना है
आहिस्ता चल ज़िंदगी, अभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज निभाना बाकी है
🙏
- Umakant