पुरुष हूं मैं ...
करुणा दया से भरा हूं मैं
पर भावनाओं को अपने अंदर छिपाना जानता हूं मैं
अपनों की खुशियों के लिए
जीवन से संघर्ष करना जानता हूं मैं
पुरुष हूँ मैं ...
आए कितनी भी बड़ी विपत्ति
खुद अकेले अंतर्मन में सब सह जाता हूं मैं
सबकी खुशियों के लिए
खुद के सपनों को कुचल जाता हूं मैं
पुरुष हूं मैं ....
अंदर से कोमल
पर बाहर से खुद को सख्त दिखाता हूं मैं
अपने आंसुओं को
दिल में छुपाना जानता हूं मैं
पुरुष हूं मैं ....
ढाल बनकर
अपने परिवार को संभालता हूं मैं
अपनी हंसी के पीछे
ज़ख्मों को छिपाना जानता हूं मैं
पुरुष हूं मैं ....
तुम्हें आगे बढ़ाने के लिए
खुद को बुरा बनाता हूँ मैं
अपने सुखी संसार के लिए
खुद को मिटाना जानता हूं मैं
पुरुष हूं मैं ....
अपनी समस्याओं को
कभी किसी से बांट नहीं पाता हूं मैं
कोई हमारी भावनाओं को भी समझे
बस इतनी सी इल्तिजा करना चाहता हूं मैं
पुरुष हूं मैं....