मैं और मेरे अह्सास
छत पर मुलाकात ना होती तो अच्छा था ll
इश्क़ की शुरुआत ना होती तो अच्छा था ll
मुहब्बत के दिले गृह प्रवेश करने के समय l
सितारों की बारात ना होती तो अच्छा था ll
आज प्रथम मिलन के वक्त हुश्न के सजदे में l
मुरादों वाली रात ना होती तो अच्छा था ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह