1. *ललाम*
मोहक छवि सियराम की, द्वापर युग घनश्याम।
दर्शन पा कर धन्य हम, मंजुल ललित ललाम।।
2. *लावण्य*
नारी के लावण्य पर, मुग्ध हुए सब लोग।
मन दर्पण में झाँकिए, मिलें सुखों के भोग।।
3. *लौकिक*
लौकिक परलौकिक सुखद, पाता वह इंसान।
भक्ति प्रेम में जो मगन, वही बना धनवान।।
4. *लतिका*
लतिका है मनभावनी, बंधे नेह की डोर।
लिपटे विटप के अंँग से, रहती भाव विभोर।।
5. *ललक*
जीवन जीने की ललक, हर प्राणी की चाह।
मिलकर सुखद बनाइए, यही नेक है राह।।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज