*पावस, बरसा, फुहार, खेत, बीज*
1 पावस
पावस का सुन आगमन,दिल में उठे हिलोर।
धरा गगन हर्षित हुआ, नाच उठा मन मोर ।।
पावस देती है सुखद, हरियाली अनुभूति।
करें मंत्रणा हम सभी,जल-संरक्षण नीति।।
2 बरसा
मेघों ने बरसा दिया, जल की अमरित बूँद।
चलो सहेजें मिल अभी, आँखों को मत मूँद।।
धन की बरसा हो रही, हुआ देश धनवान।
खड़ा पड़ोसी रो रहा, देखो पाकिस्तान।।
3 फुहार
बरखा ने जब कर दिया, अमरित की बौछार।
ग्रीष्म हुआअब अलविदा,तन-मन पड़ीं फुहार।।
4 खेत
बरसा की बूँदें गिरीं, हर्षित हुआ किसान।
चला खेत की ओर फिर,करने नया विहान।।
खेत और खलिहान में, फिर झाँकी मुस्कान।
बहे पसीना कृषक का, पहने तब परिधान।।
5 बीज
बरखा की बूँदें गिरीं, हर्षित माटी-बीज।
कृषक देखता है उसे, फिर आएँगे तीज।।
बीज अंकुरित हो गए, देखे विहँस किसान।
ईश्वर ने किस्मत लिखी, होगा नया विहान।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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