चुपचाप गुज़र जाना;
ना यहाँ शोर मचाना;
सो रहे हैं जमीर यहाँ;
मतलबी हो गया जहाँ;
मर मीटी हैं ईमानदारी;
भ्रष्टाचारी हुआ जमाना;
गुम हैं निजी स्वार्थ में;
कौन तेरी यहाँ सुनेगा ?
रोयेगा गीड़ गीड़ायेगा;
कोई नहीं आंसू पोंछेगा;
इस लिए तो कहेता हुं,
चुपचाप तुं गुज़र जाना;