साथ चलने की चाहत तुम्हारी ही थी|
साथ जीने-मरने की कसमें भी तुम्हारी ही थी|| राह तकता हूँ मैं अब तक उसकी मगर,
वो है कि इस राह आती नहीं |
करूँ कितनी भी कोशिश दिल बहलाने की मगर,
एक तेरी याद दिल से है कि जाती नहीं ||
प्रेम कि राह में मुझको ले चली| वो हाथ पकड़ के अपनी गली||
मैं तो चलता रहा उसी राह पर मगर,
अब मेरे पीछे वो है कि आती नहीं |
करूँ कितनी भी कोशिश दिल बहलाने की मगर, एक तेरी याद दिल से है कि जाती नहीं ||
क्या हुई थी गलती हमें समझाओ तो|
दूर जाने की वजह हमें बतलाओ तो ||
हम पूछते रहे उन से मगर, वो है कि कुछ भी बताती नहीं , माया!