माँ
मैं बैठा दूर परदेश में
घर में आज दिवाली है
मेरा आँगन सूना है
माँ की आँखों में लाली है
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वो बार बार मुझे बुलाती है
फिर अपने दिल को समझाती है
मेरी भाग्य की चिंता पर
अपने मातृत्व को मनाती है
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मैं कितना खुदगर्ज़ हुआ
पैसो की खातिर दूर हुआ
मेरा मन तो करता है
पर न जाने क्यूँ मजबूर हुआ
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आज फटाको की आवाजों में
मेरी ख़ामोशी झिल्लाती है
कैसे बोलूं माँ तुझको
तेरी याद मुझे बहुत आती है
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इतना रोया मैं, आज कि
मेरी आँखें अब खाली है
तुझ से दूर मेरे जीवन की
ये पहली एक दिवाली है
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माँ,मेरा आँगन सूना है
तेरी की आँखों में लाली है …..