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: --- "त्याग दे विश्वास और उम्मीद" (एक आत्म संवाद) तू क्यों रखती है विश्वास अब भी, जब तेरा कोई नहीं इस भीड़ में? जो अपना लगे, वही पराया निकला, सब झूठे भ्रम हैं, सब माया निकला। छल-कपट से भरी है ये दुनिया, सच्चाई यहाँ बस एक तमाशा है। तू क्यों बाँधे बैठी है उम्मीदें, जब हर उम्मीद एक धोखा है? उन्हें परखना तू सीख ले अब, जो हँसें साथ, वे संग नहीं होते। तेरा दर्द, तेरे आँसू, तेरी तन्हाई — किसी और के हिस्से नहीं होते। छोड़ दे अब ये मीठे भ्रम, जो दिल को बहलाते हैं झूठे। अपने मन से कर दे त्याग तू, विश्वास और उम्मीद के टूटे टुकड़े। अब खुद पर ही रख यकीन, तेरा रास्ता तुझसे है रोशन। किसी और का क्या भरोसा, जब तू ही है अपनी पहली किरण।
--- कुछ बदल गया है जीवन में — एक आत्मस्वीकृति की कविता हाँ, कुछ बदला है जीवन में, पहले जैसी मैं रही नहीं, जो सहती थी चुपचाप कभी, अब वैसी मैं कहीं रही नहीं। वो लोग जो कहते थे कुछ न कहना, आज मेरे हर शब्द से डरते हैं, जो कहते थे चुप रहना ही भला, अब मेरी आवाज़ से जलते हैं। पहले जो आँसू पी जाती थी, अब आँधियों सी बहा देती हूँ, जो सहती थी हर ताना चुपचाप, अब जवाब देना जान गई हूँ। कभी जो खुद को खो बैठी थी, अब खुद को वापस पा ली हूँ, जो टूटी थी हर मोड़ पे कभी, अब हर मोड़ पर मुस्कुरा ली हूँ। हाँ, कुछ तो बदला है जीवन में, अब मैं खुद की साथी हूँ, अब भीड़ में खो जाने वाली नहीं, मैं अब अपनी कहानी हूँ। ---
। --- भाग 11 – प्रेम बंधन: अनजाना सा (अंतिम भाग) Rewash अब अपनी खुद की साइंस और टेक्नोलॉजी रिसर्च कंपनी का संस्थापक बन चुका था। उसका सपना था कि विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित न रहे, बल्कि आम लोगों की ज़िंदगी को भी आसान बनाए। उसका इनोवेशन और समर्पण इतना गहरा था कि जल्द ही उसकी कंपनी वैश्विक मंच पर लोकप्रिय हो गई। वहीं Manish ने IAS की सेवा से संन्यास लेकर राजनीति में कदम रखा। लेकिन वो बाकी नेताओं से अलग था — उसका मकसद केवल सत्ता नहीं, सेवा था। वो जनता की परेशानियों को समझता, सुनता और उन्हें दूर करने के लिए दिन-रात काम करता। लोग उसे एक उम्मीद की तरह देखने लगे थे। Rewash की बहन Pane अब एक प्रसिद्ध दार्शनिक और लेखिका बन चुकी थी। वह अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, रूढ़ियों और मानसिक बंधनों को तोड़ती थी। उसके विचार युवा पीढ़ी को सोचने और बदलने की प्रेरणा देते थे। Abhay का मेडिकल कॉलेज और अस्पताल अब राज्य का सबसे सम्मानित संस्थान बन चुका था। वह न सिर्फ एक प्रसिद्ध डॉक्टर था, बल्कि एक आदर्श शिक्षक और संवेदनशील इंसान भी। उसकी पहचान एक मसीहा जैसी हो गई थी। Adhya अब एक सफल वकील थी — निडर, तेज़ और न्याय की सच्ची पक्षधर। कोर्ट में उसका नाम बड़े अदब से लिया जाता था। वह महिलाओं और वंचितों की आवाज़ बन चुकी थी। उन पाँचों की दोस्ती अब एक मिसाल बन चुकी थी — उम्र, समय, और जिम्मेदारियों ने उनके रिश्ते को और गहरा कर दिया था। Rahul और Gauri अब अपने छोटे से परिवार के साथ बेहद खुश थे। उनके जीवन में एक सुकून था, एक अपनापन जो उन्होंने वर्षों में एक-दूसरे के साथ सीखा था। Shiv और Reena अब पहले से कहीं अधिक समझदार और एक-दूसरे के करीब थे। उनके रिश्ते में अब न केवल प्यार था, बल्कि सम्मान और परिपक्वता भी थी। दादी माँ अब इस दुनिया में नहीं थीं, लेकिन उनकी कहानियाँ, उनका आशीर्वाद, उनकी सीखें — सबकी ज़िंदगी में हमेशा जिंदा रहीं। उनका जीवन अब भी चुनौतियों से भरा था, पर उन्होंने साथ में जीना सीख लिया था — एक-दूसरे का सहारा बनकर, एक-दूसरे की ताक़त बनकर। "प्रेम बंधन" अब एक अनजाने से रिश्ते से निकलकर, जीवन की सबसे मजबूत नींव बन चुका था। --- ?
--- भाग 10: प्रेम बंधन – अंजाना सा दादी अक्सर अपने परपोते–परपोतियों के संग आँगन में बैठी उनकी खिलखिलाहट में अपने बुढ़ापे की ताजगी ढूंढ़ा करती थीं। शिव और राहुल दोनों ही अब सफल बिजनेस टायकून बन चुके थे। उनकी साझेदारी सिर्फ कंपनी तक सीमित नहीं थी, वो एक-दूसरे के लिए भाई जैसे थे। रीना ने भी अपनी अलग पहचान बनाई थी। उसने कपड़ों के डिज़ाइनिंग का व्यवसाय शुरू किया था, जो अब एक प्रसिद्ध ब्रांड बन चुका था। वहीं गौरी, जो पहले से ही चंचल और रचनात्मक स्वभाव की थी, अब परिवार की सांस्कृतिक शक्ति बन चुकी थी — त्योहार, परंपराएं, और रिश्तों की गरिमा वही सँभालती थी। समय बीतता गया, और पाँचों बच्चे अब बड़े हो चुके थे: रेवाश – एक मेधावी वैज्ञानिक बना, जिसे शोध और इनोवेशन में गहरी रुचि थी। मनीष – एक कड़क मगर ईमानदार IAS अफसर बन चुका था, जिसके फैसले में संवेदनशीलता भी झलकती थी। रेवाशी – एक दार्शनिक बन गई थी, जो जीवन, आत्मा, और अस्तित्व पर गहरी बातें करती थी। उसकी लेखनी में एक अद्भुत गहराई थी। अभय – एक नामी डॉक्टर था, जिसकी दयालुता ने उसे पूरे शहर में लोकप्रिय बना दिया था। आध्या – एक तेज-तर्रार वकील बन चुकी थी, जो न्याय के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी। अब जबकि परिवार के हर सदस्य ने अपनी-अपनी पहचान बना ली थी, 25 साल बाद, सब एक बार फिर पुराने घर में दादी के जन्मदिन पर एकत्र हुए। वो वही आँगन था जहाँ दादी कभी उन्हें कहानियाँ सुनाया करती थीं। दादी की आँखों में आँसू थे, मगर वो आँसू दुख के नहीं, गर्व और प्रेम के थे। उन्होंने सबको देखा और कहा, "रिश्तों का बंधन कोई काग़ज़ की डोरी नहीं होता... ये तो वो भावना है, जो समय बीतने के साथ और भी मजबूत हो जाती है। तुम्हारे माँ-बाप ने रिश्तों को बनाया, तुम सबने उसे सँवारा, और अब इसे आगे ले जाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।" सबने सिर झुकाकर प्रण किया कि वो इस "प्रेम बंधन" को कभी टूटने नहीं देंगे। -
--- भाग 9: प्रेम बंधन - अंजाना सा शिव इस बार रीना का बहुत ज़्यादा ख्याल रख रहा था। नौ महीनों की ममता और इंतज़ार के बाद, रीना ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया—एक प्यारा बेटा और एक नन्ही सी बेटी। परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। रेवाश अपने छोटे भाई-बहन को देखकर बेहद उत्साहित था। वो मासूमियत से बोला, “मम्मा, मैं बेबी को छू सकता हूँ?” रीना ने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया, और रेवाश ने धीरे से अपनी बहन की उंगली पकड़ी। उस पल की खुशी हर किसी की आंखों में चमक बनकर उतर आई। कुछ दिनों बाद दोनों बच्चों का नामकरण हुआ। बेटे का नाम मनीष रखा गया और बेटी का नाम रेवाशी। शिव, रीना और दादी – तीनों बच्चों को देखकर गदगद थे। इसी दौरान राहुल की भी शादी हो गई। उसकी पत्नी गौरी बहुत सुंदर और समझदार थी, और अब वो भी मां बनने वाली थी। राहुल दिन-रात उसका ध्यान रखता, उसका हर ख्वाब पूरा करता। रेवाश अब स्कूल जाने लगा था। पढ़ाई में बहुत होशियार था और हर बार कक्षा में टॉप करता। उसके गुरुजन उसकी बुद्धिमत्ता और संस्कारों से प्रभावित रहते। समय बीतता गया। आठ साल बाद सबकी ज़िंदगी बदल गई थी। राहुल और गौरी के भी दो बच्चे हुए – अभय और आध्या। सब बच्चे अब स्कूल जाने लगे थे। घर में अब हमेशा चहल-पहल रहती थी। मनीष तो घर को खेल-खेल में “गढ़ुड़ का अड्डा” बना देता था, कभी चादर की टनल, तो कभी तकियों का किला। रेवाश अपने छोटे भाई-बहन का हमेशा साथ देता और उनकी हर शरारत में उनका भागीदार बनता। रेवाशी तो सबसे ज्यादा नटखट निकली। उसकी मुस्कान और मासूमियत हर किसी का दिल जीत लेती। राहुल के बच्चे – अभय और आध्या – भी किसी से कम नहीं थे। दोनों अपने चाचा-चाची के बच्चों के साथ खूब मस्ती करते। शिव, राहुल, रीना और गौरी – सब अपने बच्चों को देखकर बेहद खुश होते। बच्चों की शरारतें, उनकी पढ़ाई, और घर की रौनक – सब मिलकर एक सुंदर तस्वीर बनाते। अब शिव और राहुल ने अपने बिजनेस पर और ध्यान देना शुरू कर दिया था। शिव का टेक्सटाइल का काम और राहुल का फर्नीचर डिज़ाइन का बिजनेस दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करने लगा। दादी सबको देखकर ईश्वर का धन्यवाद करतीं – "हे भगवान! सबको ऐसा ही सुखी परिवार देना।" इस तरह समय अपनी रफ्तार से चलता गया, लेकिन इस परिवार की खुशियाँ और प्रेम हमेशा अडिग रहे – जैसे कोई अंजाना सा बंधन, जो रिश्तों को और भी गहरा करता चला गया।
"प्रेम बंधन - भाग 8: अनजाना सा" --- भाग 8 — अनजाना सा धीरे-धीरे दिन बीतते गए। रेवाश अब चार साल का हो चुका था। सब उसके साथ बच्चे बन जाते—दादी, राहुल, शिव और सबसे ज्यादा रीना। शिव अब अपने व्यापार पर ध्यान देता, लेकिन दिन का कुछ हिस्सा वह अपने बेटे के साथ बिताना कभी नहीं भूलता। वो रेवाश को देखकर अक्सर मुस्कुरा उठता—एक मासूम, चंचल झलक उसकी जिंदगी का सुकून बन गई थी। रेवाश भी कम नहीं था, वह शिव जैसा शांत भी था और कभी-कभी उसी की तरह गुस्से वाला भी। लेकिन जब रीना उसके आसपास होती, तो वो बस उसी के पीछे-पीछे घूमता रहता—“मम्मा… मम्मा…” कहते हुए। दादी तो अपने परपोते को देखकर फूली नहीं समातीं। वो अक्सर कहतीं, “इस घर में रौनक लौट आई है।” राहुल कभी-कभी मज़ाक में रेवाश को चिढ़ाता—“ओ छोटे डेविल, क्या कर रहे हो?” रेवाश तुरंत मुंह बनाकर कहता, “चाचू! आप हमें छोटा डेविल मत बोला कीजिए!” रीना और शिव का प्रेम अब और भी गहरा हो चुका था। वो अब एक-दूसरे की भावनाओं को बिना कहे ही समझ लेते थे। एक दिन अचानक रीना को चक्कर आया और वो बेहोश होकर गिर पड़ी। शिव घबरा गया, “रीना! आपको क्या हुआ? आप ठीक हैं?” रीना ने मुस्कराकर कहा, “कुछ नहीं, बस थोड़ा चक्कर आ गया।” पर शिव ने बिना कुछ सुने उसे तुरंत अस्पताल ले जाया। जाँच के बाद डॉक्टर ने मुस्कराते हुए कहा, “मिस्टर शिव, बधाई हो… आपकी पत्नी फिर से माँ बनने वाली हैं। इस बार आपको इनका ख़ास ख्याल रखना होगा।” शिव ने घबराकर पूछा, “कोई समस्या तो नहीं है डॉक्टर?” डॉक्टर बोले, “नहीं… लेकिन इस बार जुड़वां बच्चे हैं।” शिव एक पल को चौंक गया… फिर डॉक्टर से दोबारा पूछा, “कोई परेशानी तो नहीं है ना?” डॉक्टर मुस्कुराकर बोले, “बिलकुल नहीं… आप इन्हें घर ले जा सकते हैं।” घर पहुँचकर शिव ने सबसे पहले दादी और राहुल को यह खुशखबरी सुनाई। दोनों खुशी से झूम उठे। तभी रेवाश भागता हुआ आया और मासूमियत से बोला— “मम्मा! बेबी आने वाला है? मैं उनके साथ खेलूंगा!” सभी की आंखों में अनजानी सी चमक थी… एक नया अध्याय खुलने को था। --
भाग 7: प्रेम बंधन — अंजाना सा शिव और दादी मिलकर रीना का बहुत ध्यान रखते हैं। रीना को कोई काम नहीं करने देते। सुबह और शाम शिव उसे टहलाते हैं और हल्की-फुल्की एक्सरसाइज़ भी करवाते हैं। समय तेज़ी से बीतता है और देखते ही देखते नौ महीने गुजर जाते हैं। अब डिलीवरी का समय आ गया है। रीना को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। उसे एक वीआईपी रूम दिया गया है जहाँ सब व्यवस्थाएँ पहले से तैयार हैं। थोड़ी देर बाद डॉक्टर बाहर आकर मुस्कराते हुए कहते हैं, "एम.एस.आर. शिव, आपको बेटा हुआ है। आप सब अंदर आ सकते हैं।" ये सुनते ही घर में खुशी की लहर दौड़ जाती है। सबसे पहले राहुल दौड़कर बच्चे को गोद में उठाता है और शिव के पास लाकर कहता है, "भाई! देखो कितना क्यूट है ना बेबी!" शिव मुस्कराते हुए कहता है, "है तो बेबी बॉय... लेकिन ये किसका है?" इतना सुनकर दादी और राहुल जोर-जोर से हँसने लगते हैं। पूरा कमरा खुशी और हँसी से गूंज उठता है। अगले दिन बच्चे के नामकरण का कार्यक्रम रखा जाता है। रीना के माता-पिता और भाई भी गाँव से आ जाते हैं। पूरे परिवार और नज़दीकी रिश्तेदारों की मौजूदगी में, बच्चे का नाम "रेवांश" रखा जाता है। नाम रखते ही सब तालियाँ बजाते हैं। दादी भगवान का धन्यवाद करती हैं। रीना की आँखों में खुशी के आँसू होते हैं, और शिव एक शांत मुस्कान के साथ अपने बेटे को निहारता है — मानो ये छोटा सा रेवांश, उनके प्यार की सबसे खूबसूरत निशानी हो।
--- भाग 6 – प्रेम बंधन: अंजाना सा… (आखिरी हिस्सा) अगले दिन जब शिव और रीना स्विट्ज़रलैंड से भारत लौटे, तो उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी। दोनों के बीच अब नज़दीकियाँ और आत्मीयता पूरी तरह से बन चुकी थीं। जैसे ही वे घर पहुँचे, दादी माँ ने उन्हें गले से लगा लिया। "आ गए मेरे बच्चे? बहुत याद आई तुम दोनों की," दादी ने मुस्कुराते हुए कहा। रीना ने दादी के पाँव छुए और शिव ने हँसते हुए कहा, "दादी, अब तो हम पूरी तरह पति-पत्नी बन चुके हैं।" दादी माँ की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उन्होंने घर के मंदिर में पूजा रखवाई और पूरे परिवार को आमंत्रित किया। घर एक बार फिर सजाया गया — इस बार सिर्फ बहू के स्वागत के लिए नहीं, बल्कि दो आत्माओं के मिलन के लिए। शिव अब ऑफिस कम जाने लगा था और ज़्यादातर समय रीना के साथ बिताने की कोशिश करता। वो दोनों साथ में खाना बनाते, फिल्में देखते और छोटी-छोटी बातों में भी खुशियाँ ढूंढते। एक दिन रीना ने धीरे से शिव से कहा, "शिव, मुझे तुमसे कुछ कहना है…" "बोलो न," शिव ने प्यार से उसके हाथ थामते हुए कहा। रीना मुस्कुरा कर बोली, "शिव, मैं माँ बनने वाली हूँ…" शिव एक पल के लिए स्तब्ध रह गया, फिर अचानक उसकी आँखें भर आईं। उसने रीना को गले से लगा लिया। "यह मेरी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत पल है रीना।" पूरा घर खुशियों से गूंज उठा। दादी माँ ने फिर से पूजा रखवाई और भगवान का धन्यवाद किया। अब यह परिवार एक नई शुरुआत की ओर बढ़ रहा था — जहाँ सिर्फ प्रेम, समझदारी और अपनापन था। रीना और शिव की यह प्रेम कहानी अब एक नए अध्याय में प्रवेश कर चुकी थी — ममता और जिम्मेदारी के साथ। "रिश्तों का बंधन" अब सिर्फ एक नाम नहीं था, वो एक भाव बन चुका था — जो दिलों को जोड़ता है, जो हर मोड़ पर साथ देता है, और जो हर अंजान रिश्ते को भी अपना बना लेरूप में व्यवस्थित करूँ?
आपकी यहकहानी "प्रेम बंधन: अंजाना सा" के में एक बहुत ही नाटकी मोड़ पर चुकी है। आपने जो लिखा है, उसमें प्रेम, धोखा, रहस् और सामाजिक रस्मों का अच्छा मिश्रण है। मैं आपकी कहानी को थोड़ा व्यवस्थित और भावनात्मक रूप देकर आगे बढ़ा रहा हूँ ताकि यह एक स्पष्ट और प्रभावशाली अध्याय बन : --- भाग 5 — प्रेम बंधन: अंजाना सा शिव अब भी विचारों में डूबा हुआ था। पिछले कुछ दिनों से उसके मन में उठ रहे सवाल उसे चैन नहीं लेने दे रहे थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि जो हो रहा है, वह सही है या नहीं। कुछ देर तक ऐसे ही खोया रहने के बाद उसने खुद को संभाला और मीटिंग में जाने के लिए निकल पड़ा। उधर, रीना की शादी की तैयारियाँ पूरे जोर-शोर से चल रही थीं। घर में रौनक ही रौनक थी। हर कोना फूलों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया गया था। रिश्तेदारों का आना-जाना लगा हुआ था। सब उत्साहित थे। फेरों का समय नजदीक आ चुका था। बारात आने ही वाली थी और हर कोई स्वागत की तैयारी में जुटा था। थोड़ी ही देर में बारात धूमधाम से पहुँची। सबने नाच-गाना किया, मिठाइयाँ बांटी गईं और खाने-पीने का दौर चला। फिर जयमाल की रस्म हुई। रीना और दूल्हे ने एक-दूसरे को माला पहनाई। उसके बाद दोनों को मंडप में बैठाया गया। पंडित जी ने वैदिक मंत्रों के साथ शादी की रस्में शुरू कीं। फेरों के बाद जब दूल्हे ने सिंदूर भरकर रीना को पत्नी के रूप में स्वीकार किया, तो पंडित बोले, "अब ये विवाह संपूर्ण हुआ। आप दोनों बड़े-बुज़ुर्गों का आशीर्वाद लें।" जैसे ही दूल्हा अपने माता-पिता के पैर छूने के लिए झुका, उसका सेहरा गिर गया। भीड़ में सन्नाटा छा गया। सबकी आँखें फटी की फटी रह गईं। सामने जो लड़का खड़ा था, वो असली दूल्हा नहीं था! लड़के वाले चौंककर बोले, "ये कौन है? हमारा बेटा कहाँ है?" तभी दूर से एक लड़का लड़खड़ाता हुआ दौड़ता हुआ आया और बोला, "रुकिए! ये शादी झूठी है! मुझे किसी ने अगवा कर लिया था!" सब दंग रह गए। पंडित, बाराती, घरवाले – कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था। पर रीना के पिता ने दृढ़ता से कहा, "जब सब रस्में पूरी हो चुकी हैं, सिंदूर भर गया है, तो ये शादी झूठी कैसे हो सकती है?" लड़के के माता-पिता गुस्से में बोले, "हम अपने बेटे की शादी इससे नहीं होने देंगे! हम इसके लिए और भी सुंदर लड़की खोजेंगे!" और वे वहाँ से चले गए। अब सबका ध्यान उस नकली दूल्हे की ओर गया। धीरे-धीरे उसका चेहरा साफ़ हुआ – वो और कोई नहीं, शिव था! शिव ने सबके सामने कबूल किया, "मैंने ही असली दूल्हे को रास्ते से उठवा लिया था। क्योंकि मैं रीना से सच्चा प्रेम करता हूँ। मैं उसे किसी और का होते नहीं देख सकता था।" सब लोग चुप हो गए। रीना की आँखों में आँसू थे, पर अब उनमें दुख नहीं, कोई और गहराई थी। काफी विचार-विमर्श और भावनात्मक क्षणों के बाद, दोनों परिवारों ने आपसी सहमति से शिव और रीना की विदाई की तैयारी कर दी।
: --- भाग 4: प्रेम बंधन - अंजाना सा "क्या यही है मेरी मंज़िल?" शिव के मन में ये सवाल बार-बार गूंज रहा था, पर उस सवाल का उत्तर शायद खुद उसे भी नहीं मालूम था। उधर, रीना अपनी ही सपनों की दुनिया में खोई हुई थी, जहाँ न कोई सवाल था, न जवाब — बस एक शांत सी कल्पना, जो उसकी दुनिया को रंगीन बना रही थी। शिव, जो बिज़नेस के सिलसिले में शिमला आया था, मीटिंग खत्म कर सुकून की तलाश में पहाड़ों की वादियों में निकल गया। ठंडी हवा, दूर तलक फैली हरियाली और वो शांत वातावरण — सबकुछ उसे बेहद सुकून दे रहा था। उसी वक़्त उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी। वो लड़की — शांत, मासूम और कुछ अनजानी सी... शिव की निगाहें उस पर ठहर सी गईं। वो उसे निहारता रह गया। जैसे वक़्त थम गया हो। शिव ने फ़ौरन अपने खास दोस्त राहुल को फोन मिलाया, “राहुल, उस लड़की का पता करो। मैं पूरी डिटेल चाहता हूँ — नाम, कहाँ रहती है, सबकुछ।” राहुल ने भी बिना देरी किए जवाब दिया, “ठीक है भाई, अभी पता करता हूँ।” उधर रीना, इस अनजानी नज़रों और भावनाओं से बिल्कुल अनजान थी। उसे क्या पता था कि उसकी एक झलक ने किसी का जीवन ही बदल दिया है। शायद ये वही दुआ थी जो उसने कई रातों तक ईश्वर से की थी — लेकिन उसे खबर नहीं थी कि उसकी प्रार्थनाएं सुन ली गई हैं। कुछ ही दिन बाद, शिमला से सब लोग वापस लौट गए और अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए। शिव भी दिल्ली लौट आया। दिल्ली पहुँचकर उसने राहुल से पूछा, “पता चला उस लड़की के बारे में?” राहुल ने मुस्कराकर कहा, “हाँ भाई, पूरी जानकारी मिल गई है। उसका नाम रीना है। मिडिल क्लास फैमिली से है। उसके घर में माता-पिता और एक छोटा भाई है। और हाँ... एक और बात — उसकी शादी तय हो चुकी है। शादी सिर्फ 10 दिन बाद है।” शिव कुछ देर तक चुप रहा... उसके मन में कई भावनाएँ उमड़ रही थीं — क्या यही लड़की मेरी तक़दीर है? क्या अब कुछ कर पाऊँगा या बहुत देर हो चुकी है...? ..) ?
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