करूं प्रार्थना हाथ जोड़कर,
मैं तो मूरख, खल, कामी।
मेरे अवगुन चित न धरो प्रभु,
क्षमा करो मेरे स्वामी।

मगर प्रार्थना सही न लगती,
मन में आता सदा विचार,
शक्ति सोचने की दी तुमने,
और, हाथ जोड़ने का आचार।

मूरख कैसे हो सकता हूं,
इतनी तो है मति मेरी।
ज्ञान-चक्षु भी खुल जाते हैं,
जब करता भक्ति तेरी।।


#Stupid /मूरख

Hindi Poem by Yasho Vardhan Ojha : 111474398

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