खोया!
तो क्या नया रहा खोता
ही तो रहा है।
आया और गया तब भी नया क्या है ?
दर-बदर जीवन का यह सिलसिला है किन्तु !!! गया वो जो तो यह जान जाऊँगी
नही है कोई
किसी के जैसा पहचान जाऊँगी
प्रेम भी एक ओस की बूँद है धूप के आने से पहले तक लिखूँगी एक कविता और बताऊँगी । न खोजूँगी खुद को बाहर , सिमट कर बैठ जाऊँगी , निराशा के आँगन में आशा के बीज न रोपूँगी न ऋतु उत्सव मनाऊँगी ;;;;;
- Ruchi Dixit