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यह चमन हमारा गगन हमारा सतरंगों से प्यारा है जिसकी महिमा विश्व कहे वह भारत देश हमारा भारत देश हमारा -UDAY BUNKAR
भारत माता इतनी सुंदर इतनी प्यारी सबकी भारत माता है देह है जिसकी उज्जवल सी हिय में नेह समाता है कभी ना हारे जो रण में वह सबकी भारत माता है । X2 विश्व शीर्ष सदा रही जो समता जिसको भाती है सोना-चाँदी रत्न श्री जिसका मान बढ़ाती है विश्व शांति के पक्ष में है वह सबकी भारत माता है । X2 हमरी माता व्याकुल है गुमशुम सी चुपचुप रहती है जिसकी सूरत हँसमुख सी थी वह क्यों चिंतित सी रहती है जो नारी दुःख में है डूबी वह सबकी भारत माता है | X2 मानवता का मूल्य गिरा है अब श्री ही सबकी माता है नारी का अपमान देखती रोती भारत माता है विश्व की जननी है नारी तो नारी ही भारत माता है वह सबकी भारत माता है l X2 - ' उदय '
देवी आज धरा पर देवी आई , हास्य रुदन का अवसर लाई| कृष्ण केश प्रिय किलकारी , नर्म कपोल रुदन बरखा भारी| सुता दर्शन मानों है काशी , आज बनी जननी मात भी दासी | भात प्रसन्न मात सहोदरा लाई आज धरा ................... आँगन में पैजनियाँ नाच रही , नव गुञ्ज्य ध्वनियाँ बाज रही | नव कार्य करे बार-बार, ममता का पहने हार-बार | देख देवी की शक्ल, करता हूं उसकी नक्ल| पुत्री उल्फत से नहाई, आज धरा................... बदली शक्ल बदले रुखसार, देवी ने पहना यौवनहार | उन्मन हुए है मात-पितु , बेकली लागे है रिपु | कैसे लाएँ इतनी श्री , यौतुक से हो जाए फ्री | बना जवाईं या बनी है खाई , आज धरा................... चक्षु में लक्ष्मी बोल रही , देवी का अब कोई मोल नहीं l आब रहा रुख पर सम्मान , बनेंगे समाज में महान | खोल दिया मुख सर्प समान , लूट लिया देवी-खानदान l अश्रु बहाती देवी की माईं , आज धरा................... देवी बन चली है दासी , ज्यों दूषित हो गई है काशी l निर्लज चाहते हैं मर्यादा , बुद्धिहीनों का बना कायदा | बेशर्मी से ये बाज न आए , लक्ष्मी सह देवी को खाए l दायजे से क्या संतुष्टि पाई , आज धरा................... - ' उदय ' 16/05/2023
'वीर की सहादत ' गम को सुनाऊँ, मैं तुम्हें गम को सुनाऊँ , याद में मेरे लाल की , मैं अस्क बहाऊँ । गम को सुनाऊँ.…............ पोंछने वाले की ,अब रूह न दिखती , रक्त के आँसू बने , इन्हें कैसे छुपाऊँ। गम को सुनाऊँ.…............ वादे कि अहमियत ,तुझे नहीं लगती , राह में रोज मैं ,पलकों को बिछाऊँ। गम को सुनाऊँ.…............ सोया है देर तक क्यों ,तिरंगे को ओढ़कर उठता है कि नहीं मैं ,तुझे मार लगाऊँ। गम को सुनाऊँ.…............ ये खून से सने कपड़े ,ये गहरे से घाव कपड़ों को तेरे मैं , हृदय से लगाऊँ। गम को सुनाऊँ.…............ सूखे है लब और सूखे है मेरे गाल , तू गया हि कहाँ जो तेरा शोक मनाऊँ। गम को सुनाऊँ.…............ ले मैं खुश हो गई ,मातम को छोड़कर तेरी सहादत में अब ,मैं गर्व मनाऊँ । गम को सुनाऊँ.…............ 'उदय' के अल्फाज़ों में , माता का विशद दुःख , सहादत को मैं लाल की , दुनिया को सुनाऊँ । गम को सुनाऊँ.…............ याद में मेरे................ गम को सुनाऊँ.…............ - 'उदय '
प्रिय आजाओ प्रिय ओ मोरी प्रिय यादें तेरी सताएँ विरह की बह्नि में मैं हूं जलता अब आभी जाओ प्रिय मन यादों की सिंधु में जाके डुबकी लगाए निठुर न बन ओ प्रिय ओ मेरे ख्वाबों की शहज़ादी तू क्यों न आती प्रेम को तरसे हिय दिनकर की तुम पहले पहल की पहली किरण हो ओ मोरी साकी कहाँ हो तुम प्यासा कंठ पुकारे जीवनराह में मैं हूँ एकाकी ओ मेरे साथी उड़े हुए रे चैना आजाओ प्रिय ओ मोरी प्रिय जीवन तेरे हवाले... आई मैं आई ओ दिलोजाना अब न तोहे सताऊँ जीवनराह में मैं हूँ तेरी तू है माही मोरा हम दोनों मिलके व्योम पे चलके 'उदय' के गीतों को गाएँ गाओ रे गाओ प्रेमियों गाओ ये गीत मेरा तुम्हारा होहो...हो.हो होहो..हो.हो.हो आ..आ...आ..आ.आ Written by - 'उदय' Date -20/01/2024,Sat
व्यंग्य ओ मोरी हसीना सुन तेरे लिए कविता सुन सोच रहा बहुत दिनों से अल्फाज गाऊं तेरे लिए रागों की मीठी सरगम पे गीत गुनगुनाऊ तेरे लिए तू चंचल चपल चारवी मेरी हुस्न परी ख्वाबों की मेरी कटीले नयन से न्यारी तुम सर्पिल केशों से प्यारी तुम .सच मेरे हृदय की तू बड़ी सुगंधित खुशबू है हाँ होगा यह इत्र नही तेरे वदन की खुशबू है बोले मुख से फूल झरे है प्यारी तेरी बातें हैं ओ सुषमा बोले कम क्यों क्या इसमें भी राज़ है घूमों मैं ये सकल विश्व ये आग्रह तेरा कभी नहीं स्वर्ण आभूषण रत्न श्री भी भाए तुझको कभी नहीं तू लजवन्ती सी कोमल नारी हाथ छुए से सिमट गई मन उपवन में लतिका जैसी यहाँ-वहाँ तू फैल गई कोटि कवि कोटि शायर भी रूप बखान में चित्त हुए इसमें हिन्दी,उर्दू तक के शब्दकोश भी रिक्त हुए
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