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Review wala

Review wala

@reviewer1970gmailcom
(18)

कॉकरोच और टेक्नोलॉजी पर एक मजेदार कविता:

कॉकरोच की चाल निराली,
टेक्नोलॉजी से भी तेज़ है उसकी ताली।
किचन में जब वो आता है,
सबको डराकर भाग जाता है।

टेक्नोलॉजी ने दी हमें रोबोट की सेना,
पर कॉकरोच से बचने का नहीं मिला कोई तरीका।
वो चलता है दीवारों पर, छुपता है कोनों में,
टेक्नोलॉजी भी हार मान जाए, उसकी चालों में।

ड्रोन उड़ते हैं आसमान में, करते हैं निगरानी,
पर कॉकरोच की चालाकी, सब पर भारी।
टेक्नोलॉजी ने दी हमें स्मार्टफोन की दुनिया,
पर कॉकरोच की दुनिया, उससे भी अनोखी।

तो चलो मिलकर सोचें, एक नई टेक्नोलॉजी बनाएं,
जो कॉकरोच को भी मात दे, और हमें चैन दिलाए।
कॉकरोच और टेक्नोलॉजी का ये खेल निराला,
दोनों की दुनिया में, है कुछ तो कमाल का।
```

क्या आपको यह कविता पसंद आई? 😊

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वस्ल का ख्याल एक ऐसा है,
जो दिल को छू जाए,
यादों की गलियों में,
खुशबू सी बिखर जाए।

वो लम्हे जो हमने साथ बिताए,
हर पल में बस वही समाए,
वस्ल की वो रातें,
चाँदनी में जैसे चाँद छुप जाए।

तेरी बातों की मिठास,
तेरे साथ की वो खास,
हर ख्याल में बस तू ही तू,
वस्ल का ख्याल, जैसे कोई जादू।

तू पास हो या दूर,
दिल में बस तेरा ही नूर,
वस्ल का ख्याल, एक सपना सा,
जो हर पल में हो पूरा।

कैसी लगी ये कविता? 😊

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एक बकरे की व्यथा कथा


कितने नेक दिल हैं आप, वाह ?
      आपने मुझे दिल से चाहा ? पर क्यों यह भी बताईये न
मेरा भला ही चाहा ? पर अपना भी न
       आपने मेरे माथे पे टीका लगाया
बड़िया चीज़े खिलाई मलाईदार
     फूल माला पहनाई  , शायद अंतिम यात्रा पर भेजने से पहले
( यह बात और है कि मेरे पैर भी बांध दिये)
   फिर एक भयानक से आदमी ने गण्डासा उठाया
दे मारा मेरे गले पर , रक्त बहा, मैं मर गया काफी दर्द से
    आधा घण्टा लग गया होगा.....
मंत्र या कुछ ऐसे ही कुछ  पढ़े गए
आपने समझा स्वर्ग पहुँच गया
   मैं तड़प रहा था
मेरे शरीर की बोटियाँ काटी गई
    मसाला डाल के भूना गया
    आपने स्वाद से मेरी बोटिया खा ली
हड्डियाँ भी चूसी
मैं तड़प तड़प के मर गया
    स्वाद लिया आपने
स्वर्ग नही भेजा मुझे
     आपने अपने स्वर्ग जाने की तैयारी कर ली हो शायद
देखते है आप कहाँ जाते हैं

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सुदर्शन फ़ाकिर की ग़ज़ल "किसी रंजिश को हवा दो" बहुत ही गहरी और भावुक है। इसे हास्य में बदलना एक दिलचस्प चुनौती है। यहाँ एक हास्य कविता है जो life certificate के संदर्भ में है:

```
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी,
मुझको एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।

बैंक की लाइन में खड़ा हूँ, ये सबूत है मेरा,
लाइफ सर्टिफिकेट बनवाने आया हूँ अभी।

कागजों की इस दुनिया में, मैं भी हूँ एक सितारा,
सरकारी बाबू को दिखा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।

फॉर्म भरते-भरते थक गया हूँ, पर हिम्मत नहीं हारी,
अब तो साइन करवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।

किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी,
मुझको एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
```

उम्मीद है कि यह कविता आपको पसंद आई होगी! 😊

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(जीवन के पॉवर केंद्र फुस्स हो जाएं अगर..)

जीवन की यात्रा में, जब तू थक जाए, 
अपने सपनों को न छोड़, बस आगे बढ़ जाए। 

जीवन के रास्तों पर, जब अच्छा मोड न आए, 
अपनी मंजिल को न भूल, बस आगे बढ़ जा
जीवन के उद्देश्य को, जब तू खो जाए, 
अपनी आत्मा को न खो, बस आगे बढ़ जा

जीवन के संघर्षों में, जब तू हार जाए, 
अपनी आशाओं को न छोड़, बस आगे बढ़ जा
जीवन के अद्भुत सफर में, जब तू रुक जाए, 
अपने सपनों को न छोड़, बस आगे बढ़ जा 

जब जीवन के पॉवर केंद्र फुस्स हो जाएं
जीवन की यात्रा में, जब तू थक जाए, 
अपने सपनों को न छोड़, बस आगे बढ़ जाए। 

जीवन के रास्तों पर, जब अच्छा मोड न आए, 
अपनी मंजिल को न भूल, बस आगे बढ़ जाए। 
जीवन के उद्देश्य को, जब तू खो जाए, 
अपनी आत्मा को न खो, बस आगे बढ़ जाए। 

जीवन के संघर्षों में, जब तू हार जाए, 
अपनी आशाओं को न छोड़, बस आगे बढ़ जाए। 
जीवन के अद्भुत सफर में, जब तू रुक जाए, 
अपने सपनों को न छोड़, बस आगे बढ़ जा

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हर कुत्ते का दिन आता है, ये कहावत पुरानी है,
हर कोई न्याय पाता है, ये सच्चाई जानी है।
कोई लाख करे मनमानियां, पर हार उसे भी मिलती है,
वक्त का पहिया घूमता है, और जीत सच्चाई की होती है।

धूप छांव का खेल है जीवन, हर दिन नया सवेरा है,
जो आज है अंधेरा, कल वो उजाला घनेरा है।
कभी-कभी लगता है, अन्याय का राज है,
पर हर कुत्ते का दिन आता है, ये भी एक अंदाज है।

जो बोता है बबूल, उसे कांटे ही मिलते हैं,
जो करता है सच्चाई से प्यार, उसे फूल खिलते हैं।
समय की चाल निराली है, सबको उसका फल मिलता है,
हर कुत्ते का दिन आता है, ये कहावत सच्ची लगती है।

धैर्य रखो और सच्चाई पर चलो, ये जीवन का मंत्र है,
हर कठिनाई का हल मिलेगा, ये समय का तंत्र है।
जो आज है राजा, कल वो रंक भी हो सकता है,
हर कुत्ते का दिन आता है, ये जीवन का सत्य है।

कभी-कभी लगता है, संघर्ष का अंत नहीं होता,
पर हर रात के बाद, एक नया दिन भी होता।
जो आज है मुश्किल, कल वो आसान हो जाएगा,
हर कुत्ते का दिन आता है, ये समय दिखाएगा।

जो करता है मेहनत, उसे फल जरूर मिलता है,
जो करता है छल-कपट, उसका अंत भी होता है।
जीवन की इस राह में, सबको अपना हिस्सा मिलता है,
हर कुत्ते का दिन आता है, ये कहावत सच्ची लगती है।

सपनों की उड़ान हो, या हकीकत की जमीन,
हर किसी का वक्त आता है, ये जीवन का यकीन।
जो आज है संघर्ष, कल वो सफलता में बदल जाएगा,
हर कुत्ते का दिन आता है, ये समय का पहिया बताएगा।
इसी पर य़ह कविता पेश किया है..

हर कोई किसी न किसी दिन न्याय पाता है
सुना है हर कुत्ते का दिन आता है
कोई लाख कर ले मनमानियां  पर हार जाता है
वो कहते हैं न ,
हर कुत्ते का दिन आता है
(यह क्या बके जा रहा हूँ मैं ?
और क्यों पढ़े जा रहे हैं आप ? )
मैंने अर्ज़ किया न साहब ,
हर कुत्ते का दिन आता है.
क्या कोई कुत्ता घी पचा पाता है?
मैंने अर्ज़ किया न साहब ,
हर कुत्ते का दिन आता है
कोई कोई कुत्ता तो लात
या कोई कोई हड्डी पाता है
(मैंने अर्ज़ किया न साहब
हर कुत्ते का दिन आता है)
(यह कोई राजनीति आदि नहीं है जो मैं बके जा रहा हूँ
मैंने अर्ज़ किया न साहब
हर कुत्ते का दिन आता है)..

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उस पत्थर दिल वाले ने
रीड की हड्डी को झुकाया,
एक सौ बीस डिग्री पर लाया।
पुंछ को गोल घुमाया,
और contract को पाया ।

कुर्सी पर बैठे ऐसे,
जैसे योगी ध्यान में बसे।
कंप्यूटर पर काम किया,
हंसी में सबको डुबाया।

बॉस ने देखा, हंस पड़ा,
कहा, "ये क्या तमाशा है भला?"
कर्मचारी ने मुस्कुराया,
कहा, "ये तो बस योग का कमाल है, भैया!"

काम भी हुआ, मजा भी आया,
रीड की हड्डी ने भी आराम पाया।
पुंछ को गोल रखते हुए,
हमने ऑफिस में धूम मचाया।

फिर आया भ्रष्टाचार का दौर,
सबने मिलकर किया जोर-शोर।
रिश्वत का खेल चला,
ईमानदारी का नाम मिटा।

सरकारी दफ्तर में लगी भीड़,
सबने अपनी जेबें तानी।
कर्मचारी ने कहा, "क्या करें,
भ्रष्टाचार की है ये कहानी।"

फिर भी हमने हिम्मत न हारी,
ईमानदारी की राह पकड़ी।
पुंछ को गोल रखते हुए,
हमने भ्रष्टाचार को भी मात दी।

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मेरे शौक को तू दवा समझ,
मेरे हाल पे मुझे छोड़ दे।
फ़िक्र न कर, काम से काम रख,
सदा उसकी सुनता हूँ, गुनाह नहीं।

दिल की बातें दिल में रहने दे,
ख्वाबों को उड़ान भरने दे।
जो बीत गया, उसे बीत जाने दे,
आने वाले कल को सजाने दे।

तेरी राहों में कांटे होंगे,
मेरी राहों में फूल खिलेंगे।
तू अपनी मंज़िल को पा ले,
मैं अपनी राहों को चुन लूँगा।

तेरे सपनों में रंग भरूँगा,
तेरे दर्द को भी सहूँगा।
तू बस मुस्कुराती रह,
मैं तेरे हर आँसू को चुरा लूँगा।

मेरे शौक को तू दवा समझ,
मेरे हाल पे मुझे छोड़ दे।
फ़िक्र न कर, काम से काम रख,
सदा उसकी सुनता हूँ, गुनाह नहीं।

बस यादों मे बसी,तुझे क्या?
यह भीं दवा है उस मर्ज़ का
वो भी जो मेरे दिल को मन भाये
मेरे शौक को तू दवा समझ,
मेरे हाल पे मुझे छोड़ दे..

( काल्पनिक हैं.. मेरी कोई एक्स y z नहीं है या थी)

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मंत्री जी का संकल्प, बड़ा ही अनोखा,
तीन टांग की कुर्सी, विकल्प में रोका।
चार mp वाली पार्टी ने तो टोका
य़ह है धोखा य़ह है धोखा

बैठे जब मंत्री जी, कुर्सी हिलने लगी,
तीन टांगों पर, संतुलन बिगड़ने लगी।
चार mp गए भाग हालत पतली होने लगी

सोचा मंत्री जी ने, क्या करें उपाय,
चौथी टांग जोड़ें, या कुर्सी बदलें भाई?
चार mp वाले मानते नहीं भाई..

सोचते-सोचते, मंत्री जी की मुस्कान गायब
तीन टांग की कुर्सी, अब तो दिल को न  भाए।

कहने लगे मंत्री जी, यही है सच्चाई,
तीन टांग की कुर्सी, है सबसे बड़ी कड़ाई

लोग हंसे, बोले मंत्री जी, क्या बात है,
तीन टांग की कुर्सी, सच में खास है।

मंत्री जी का संकल्प, सबको भाया,
तीन टांग की कुर्सी, ने उनको खूब दौड़ाया
```

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झुकने की डिग्री का महत्त्व.. पुल सड़क आदि

झुकने की डिग्री का महत्त्व.. पुल सड़क आदि





रीढ़ कित्ती डिग्री झुकने से पुल टूटे ,?

नदी मे बुजुर्ग महिला , बच्चे भी डूबे

थोड़ी सी बारिश मे , घर भी नहाए,

साठ डिग्री पे आदमी झुके और सड़क भी टूटी



जब बिना बिजली के, बल्ब भी जले,

तो साठ डिग्री पे भ्रष्ट आदमी क्यों न झुके?

जब बिना बिजली के, फैन भी चले,

तो बिना डिग्री के, आदमी क्यों न झुके?



जब बिना बारिश के, नदी भी बहे,

तो साठ डिग्री पे , आदमी क्यों न झुके?

जब बिना बारिश के, बूँद भी गिरे,

तो बिना डिग्री के, आदमी क्यों न झुके?



जब बिना बिजली के, टीवी भी चले,

तो साठ डिग्री , वो आदमी क्यों न झुके?

जब बिना बारिश के, फूल भी खिले,

तो बिना डिग्री के, आदमी क्यों न झुके?



जब बिना बिजली के, बिजली भी आए,

तो साठ डिग्री भ्रष्ट , आदमी क्यों न झुके?

जब बिना बारिश के, बादल भी आए,

तो सत्तर डिग्री , आदमी क्यों न झुके?



जब बिना बारिश के, बूँद भी न गिरे,

तो सत्तर डिग्री आदमी क्यों न झुके?

जब बिना बिजली के, बल्ब भी न जले,

तो बिना डिग्री वाला आदमी क्यों न झुके?



जब बिना बारिश के, नदी भी न बहे,

तो बिना डिग्री के, आदमी क्यों न झुके?

जब बिना बारिश के, पुल नहाए,

तो बिना डिग्री के, आदमी क्यों न झुके।

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