Quotes by Review wala in Bitesapp read free

Review wala

Review wala Matrubharti Verified

@reviewer1970gmailcom
(35)

, सफ़लता और जलेबी पर एक हास्य-व्यंग्य कविता प्रस्तुत है:

सफ़लता और जलेबी का मोल

सफ़लता कोई जलेबी नहीं, जिसको चूसें आप,
ये मीठा-मसालेदार अनुभव है, जो बनाए आपको लाजवाब।
जलेबी की तरह गोल-गोल, घूमता है इसका रास्ता,
कभी मीठा तो कभी तीखा, हर मोड़ पर नए चौंका।

जलेबी की मिठास पर मत जाना, सफ़लता का है अलग ही फसाना,
यह मेहनत और परिश्रम का है नतीजा, चुस्की नहीं, पूरा है जंग का मजा।
चाशनी में डूबी जलेबी जब तक चूसे, पर सफ़लता चूसने से नहीं आती,
यह तो संघर्ष और हिम्मत का परिणाम है, जो हर दिन का संघर्ष बताती।

जलेबी का स्वाद तुरंत मिलता, पर सफ़लता का स्वाद धीरज मांगता,
यह किसी दुकान की चीज़ नहीं, यह तो समय और साधना का फल है।
जब आप सफ़लता की चाह में निकल पड़ते, तो जलेबी की तरह ना मुड़ें वापस,
रास्ते में आएं कांटे, तो उन्हें चूसें नहीं, बल्कि मेटल का मन बनाएं आप।

सफ़लता कोई जलेबी नहीं, यह तो मेहनत का मीठा फल है,
यह चूसने से नहीं मिलता, यह तो पसीने की बूंदों में पलता है।
जब आप सफ़लता की राह पर चलते, तो जलेबी की मिठास को भूलें,
क्योंकि यह सफ़र है तपस्या का, जिसमें आपको संघर्ष को अपनाना होगा।

जलेबी की खुशबू तो हर कोई पसंद करता, पर सफ़लता का रास्ता हर कोई नहीं पकड़ता,
क्योंकि यह तो मेहनत का फल है, जिसे पाने में समय लगता।
तो सफ़लता को चूसने की न सोचें, यह कोई जलेबी नहीं,
यह तो मेहनत, धीरज, और संकल्प का मोल है, जिसे पाने में लगेगी पूरी ताकत आपकी।

   जलेबी की मिठास का मजा लें, पर सफ़लता की चाह में डूबें,
यह मीठा फल तभी मिलेगा, जब आप मेहनत में पूरी तरह से झूमें।
बिल्कुल, आइए इस विचार को विस्तार से समझते हैं:

### जलेबी का स्वाद
जलेबी का स्वाद एक अद्वितीय मिठास से भरा होता है। इसे बनाने में कुछ ही समय लगता है और इसे खाते ही हमें तुरंत संतुष्टि मिलती है। जलेबी की मिठास का आनंद लेते हुए हम तुरंत उसके रस में डूब जाते हैं। यह एक तात्कालिक सुख का प्रतीक है, जिसे हम बिना किसी विशेष प्रयास के प्राप्त कर सकते हैं। जलेबी की मिठास को चखते ही हमें एक अद्वितीय अनुभव होता है, जो हमें तुरंत खुशी और आनंद से भर देता है।

### सफ़लता का स्वाद
सफ़लता का स्वाद बिल्कुल अलग होता है। यह एक धीमी और संघर्षपूर्ण प्रक्रिया होती है, जिसमें समय और धैर्य की आवश्यकता होती है। सफ़लता के लिए हमें लगातार मेहनत और परिश्रम करना पड़ता है। यह किसी दुकान में मिलने वाली चीज़ नहीं है जिसे हम तुरंत खरीद सकते हैं। सफ़लता के लिए हमें निरंतर प्रयास और धैर्य की आवश्यकता होती है।

### समय और साधना का फल
सफ़लता वास्तव में समय और साधना का फल है। इसे पाने के लिए हमें अपने लक्ष्य पर दृढ़ता और समर्पण के साथ कार्य करना होता है। सफ़लता के मार्ग पर हमें कई बार असफलताओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमें हार मानने की बजाय अपने प्रयासों को जारी रखना चाहिए। सफ़लता का स्वाद उन लोगों को ही मिल सकता है जो समय और साधना में विश्वास रखते हैं।

### सफ़लता और जलेबी की तुलना
जलेबी और सफ़लता की तुलना हमें यह सिखाती है कि जबकि जलेबी की मिठास को हम तुरंत पा सकते हैं, सफ़लता की मिठास को पाने में हमें समय, धैर्य, और कठिन परिश्रम करना होता है। यह विचार हमें याद दिलाता है कि जीवन में तुरंत खुशी और संतुष्टि के लिए हमें तात्कालिक सुख से परे जाकर दीर्घकालिक लक्ष्यों की ओर ध्यान देना चाहिए।

**जलेबी की मिठास को चखने का आनंद लें, लेकिन सफ़लता की मिठास को पाने के लिए समय और साधना में लगे रहें।** सफ़लता की यात्रा में जो धैर्य और समर्पण लगता है, वही उसकी असली मिठास को और भी खास बनाता है।

आशा है कि इस विस्तार से विचार करने पर आपको यह अवधारणा और भी गहराई से समझ आई होगी। 😊📜

Read More

लगा के आग शहर को,
ये बादशाह ने कहा,
उठा है दिल में आज
तमाशे का शौक़ बहुत

झुका कर सर, सभी
शाहपरस्त बोल उठे
हुज़ूर का शौक सलामत रहे
शहर हैं और बहुत.”

आभार.. ट्विटर

Read More

प्यार की मृगतृष्णा

प्यार की मृगतृष्णा, एक सपना अनजाना, 
दिल की गहराइयों में, बसा एक अफसाना। 
आँखों में चमकती, वो एक झलक प्यारी, 
पर हाथों से फिसलती, जैसे रेत की धारा।

हर कदम पर लगता, अब मिल जाएगा, 
पर पास आते ही, वो दूर हो जाता। 
दिल की धड़कनों में, बसी उसकी तस्वीर, 
पर हकीकत में, वो बस एक तसवीर।

चाँदनी रातों में, उसकी यादें जगाती, 
पर सुबह होते ही, वो धुंधली हो जाती। 
प्यार की मृगतृष्णा, एक अनजानी राह, 
जिसे पाने की चाह में, दिल हो जाता तबाह।

Read More

एक हास्य व्यंग्य कविता है आस्था आदि पर नहीं पर हा हा हू हू पर)
Serious रहे तो क्यों रहने का भाई लोग..

पार्टी हो या जीवन, अपने को हँसते रहना है,
सीरियस होकर क्या मिलेगा, बस मस्ती में बहना है।

हाहा हूँ हूँ ही ही, यही तो अपना मंत्र है,
दुखों को दूर भगाना, यही तो अपना तंत्र है।

सीरियस लोग तो बस, चिंता में ही घुलते हैं,
हम तो हँसी के फूल, हर पल में ही खिलते हैं।

पार्टी में नाचेंगे, गाएँगे और झूमेंगे,
जीवन की हर मुश्किल को, हँसी में ही झेलेंगे।

तो आओ दोस्तों, हँसी का ये जादू फैलाएँ,
सीरियस होकर क्या मिलेगा, बस मस्ती में जीना सिखाएँ।
```

आशा है आपको यह कविता पसंद आई होगी! 😊

Read More

एक व्यंग्यात्मक कविता है:

उस रिसॉर्ट में  कई कमरे है,attached  स्विमिंग पूल है पर मग बाल्टी नहीं है, 
कमरे में एसी है पर कुर्सी नहीं है, किराया बीस हजार पर खाने को गोभी है। 

सोचो, क्या अजीब हाल है, ये कैसी जगह है, 
जहाँ आराम के नाम पर बस दिखावा है। 

स्विमिंग पूल में डुबकी लगाओ, पर नहाने को मग नहीं, 
एसी की ठंडक में बैठो, पर कुर्सी की जगह नहीं। 

बीस हजार का किराया, पर सुविधा का नाम नहीं, 
खाने में गोभी, जैसे स्वाद का कोई काम नहीं। 

क्या यही है लक्ज़री, क्या यही है आराम, 
या फिर ये है बस एक दिखावा, एक बड़ा धोखा नाम। 

रिसॉर्ट के मालिक से पूछो, ये कैसी व्यवस्था है, 
क्या यही है उनका मानक, क्या यही उनकी व्यवस्था है? 
(Resort का नाम नहीं बताऊँगा पर य़ह एक reality है)
आशा है आपको यह कविता पसंद आई होगी! 😊

Read More

लुट गई बस्तियाँ, जब्त हुए नग़मे

लुट गई बस्तियाँ, जब्त हुए नग़मे,
खामोश हैं अब वो गलियाँ, जहाँ गूंजते थे तराने।

हर कोने में बिखरी है उदासी की धूल,
ख्वाबों की चादर पर अब नहीं कोई फूल।

वो हँसी, वो खुशी, सब खो गए कहीं,
अब तो बस यादें ही रह गईं यहीं।

आओ, मिलकर फिर से बसाएँ ये बस्तियाँ,
फिर से गूंजें नग़मे, फिर से खिलें खुशियाँ।

उम्मीद की किरण से भर दें हर दिल,
फिर से जिएं वो पल, जो थे कभी हसीन।

आओ, मिलकर फिर से सजाएँ ये बस्तियाँ,
फिर से गूंजें नग़मे, फिर से खिलें खुशियाँ।

Read More

एक बात है कि फिल्मो के नामों की कमी हो रही है
कुछ idea पेश हैं जिससे पहले के नाम वाली फिल्मो को दुबारा नये नाम से पर्दे पर लाया जाए
पुराना नाम " मेरा पति सिर्फ मेरा है "
नये नाम.., तेरा पति सिर्फ मेरा है
                मेरा पति सिर्फ तेरा है
                 तेरा पति सिर्फ तेरा है
आदि..
पुराना नाम बिन बादल बरसात
नये नाम
           बिन हवा के आंधी, बिन लड़की के शादी, आदि
पुराना नाम ...एल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?
नया.. अल्बर्ट पिंटो बार बार क्यों दादर जाता है?
         अल्बर्ट पिंटो को उसकी पत्नी क्यों सताती है?
आदि

आशा है फिल्म वाले मेरे सुझाव का फायदा उठाएंगे।

Read More

ठेका दिलवाने का ठेका, बड़ा ही अजीब काम,
हर कोई बनता है ठेकेदार, सबका एक ही नाम।

कभी कोई कहे, "मैं हूँ सबसे बड़ा खिलाड़ी,"
दूसरा बोले, "मेरे बिना ठेका नहीं मिलेगा प्यारी।"

कोई लाए रिश्वत की थैली, कोई दे वादों की झड़ी,
सबकी जुबान पर एक ही बात, "मुझे ही ठेका दे, मेरी लड़ी।"

ठेकेदारों की भीड़ में, कौन है असली, कौन नकली,
सबकी चालें ऐसी, जैसे हो कोई फिल्मी कहानी।

कभी कोई नेता, कभी कोई अफसर,
सबकी नजरें ठेके पर, जैसे हो कोई खजाना।

ठेका दिलवाने का ठेका, बड़ा ही मजेदार खेल,
जिसने भी खेला, उसने ही पाया, ठेके का मेल।

तो दोस्तों, संभल के रहना, ठेके की इस दुनिया में,
क्योंकि यहाँ हर कोई है, ठेका दिलवाने के ठेके में माहिर।
```

Read More

(राम सिंह ढाबे वाला राम प्यारी को चाहता हैं जिसके पिता लस्सी मिठाई की दुकान चलाते है। राम प्यारी चाहती है कि राम सिंह उनके परिवार का ही बन के रहे पर फिल्मी ट्विस्ट आते है और रिश्ता टूट ही वाला है..)

राम सिंह की दर्दीली आवाज़ है...

"हर दिन मुझे ज़ालिम तूने तड़पाया तो क्या किया
मेरे दिल का तन्दूरी रोस्ट बनाया तो क्या किया

ले दे के तेरे डैडी को पटाया था कैसे मैंने उसे
उस का दिमाग तूने ही फिराया तो क्या किया

ज़िंदगी मे यूँ कई  सितम ढाये थे वैसे ही तूने
अब इसमे तूने मिर्ची तड़का लगाया तो क्या किया "

राम प्यारी भी जवाब देती है बॉलीवुड फिल्मी..

मेरे  पेट मे  भूख सी लगती है ढाबे से जब मै गुजरती हूँ
इस बात से यह न समझ लेना कि मैं तुझसे मुहब्बत करती हूँ

मेरे डैडी से जो भी कहा तूने वो मैं ठीक से ही समझती हूँ
तेरे प्लान क्या है आगे के लिए क्या मै तुझे बेवकूफ लगती हूँ

(अगली धुन  )

चिकन मांगू न कबाब मांगू
मैं तो राम सिंह तेरा प्यार मांगू

यह मस्त गाने को सुन कर राम सिंह गदगद हो जाता है और ढाबे को लीज़ पर दे कर राम प्यारी  के परिवार का घर जंवाई बन जाता है। सब खुश
समाप्त

Read More

कुत्ते पर निबंध

कुत्तों का origin  पन्द्रह हजार साल पहले हुआ, ऐसा जर्मन साहित्य से पता चलता है
बहुत चतुर होते हैं
चीन वाले इनको खा जाते हैं
यह अपनी टेरिटरी बना के रखते हैं
आपकी कार  के टायर पे सू सु कर के आपसे रिश्ता बनाते है
दूसरी जगह से कार आयेगी तो उसका टायर सुंघते है जैसे कोई अखबार हो
वहाँ के कुत्ते की खोज खबर ऐसे ही मिलती है इनको
खम्बे से भी काम चला लेते है टायर न हो तो
बिजली के खम्बे न हो तो क्या करेंगे ( यह आउट ऑफ कोर्स है)
हाथी आदि के पीछे पड़ जाते है, भोंकते है
कुछ लोग इनको आदमी से बेहतर भी मानते हैं
भेड़िये इनके पूर्वज है या नही, विवाद का विषय है

कार का पीछा करेंगे
रोकेंगे तो पूँछ हिलाएंगे
आगे नही आता
कित्ते नम्बर देंगे?

Read More