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डॉ प्रियंका सोनी प्रीत

डॉ प्रियंका सोनी प्रीत

@priyankasoni1749


🌹❤️गज़ल❤️🌹
. ❤️वो तबस्सुम से मेरा दर्द बढ़ा देते हैं।
अपने बीमार को क्या ख़ूब सजा देते हैं।

❤️आंखों आंखों में किए जाते हैं घायल मुझको।
बातों बातों में मेरे ग़म को बढ़ा देते हैं।

❤️जान लेकर ही हटेंगे ये ग़मों के साए
दिल पर लिख लिख के मेरा नाम मिटा देते हैं।

❤️रंग बनकर कहीं उड़ने को मैं चाहूं भी अगर
बेड़ियां पांव में है ऐहबाब लगा देते हैं।

❤️कितना कांटों भरा है "प्रीत" का रस्ता लेकिन
हम लहू से जिसे गुलज़ार बना देते हैं

❤️डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"❤️

-डॉ प्रियंका सोनी प्रीत

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दिल में किसी ने झांक के तूफा उठा दिया,
हमने भी हंसते-हंसते सफीना डुबा दिया।
डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"

-डॉ प्रियंका सोनी प्रीत

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शरारतें तेरी जब जब भी याद आती है
शर्म की स्वर्णिमा चेहरे पे बिखर जाती है।
डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"

-डॉ प्रियंका सोनी प्रीत

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पिला दे साकिया जी भर के मैं भी पीना चाहूंगी
भूला के बेवफा को मै भी कुछ पल जीना चाहूंगी।
डॉ प्रियंका सोनी" प्रीत"

-डॉ प्रियंका सोनी प्रीत

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❤️ ग़ज़ल ❤️
❤️ लब से लगा लो जाम को❤️

🌹बनके हयात आएंगे, ठोकर न मारना
इस बावफा के प्यार पे, खंजर न मारना🌹

🌹बढ़ने लगी है तिश्नगी, दरिया को देखकर,
लब से लगा लो जाम को, दिलबर न मारना।🌹

🌹शाईस्तगी से हमने उसे, इतना तो कहा
बिखरे पड़े हैं पहले ही, हंसकर न मारना।🌹

🌹नादान को इस बात की, बिल्कुल नहीं खबर,
ख़ामोश कोई झील में , कंकर न मारना🌹

🌹ए संगदिल सनम तेरा, पत्थर का है जिगर
एहसास की गली में तो चक्कर न मारना🌹

🌹दिखला दिया है "प्रीत" ने दुनियां को आईना,
इस दर्द की सहेली को छूप कर न मारना।🌹

❤️डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"❤️

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*🌹मुझे अच्छा लगता है*🌹

उम्र के साथ साथ वक्त के बदलते परिस्थिति अनुसार माहौल के अधीन हर इंसान के अपने शौक बदलते रहते हैं अपनी पसंद बदलती रहती है कब क्या हमें अच्छा लगने लगता है या क्या अच्छा लग जाए यह हम स्वयं नहीं जान सकते।
बस ऐसे ही हमारी अपनी ख्वाहिशों के आकाश कभी बहुत विस्तृत होते थे तो कभी सीमित हो जाते थे।
खयालों के पुलिंदो को बांधते और खोलते हम खुद में ही उलझ कर रह जाते थे।
कभी कुछ पाने की ख्वाहिश की और वह ना मिल पाया तो तो समय के चलते वह ख्वाहिश वह तमन्ना वहीं पर किसी मासूम बच्चे को मनचाही चीज ना मिल पाने के दुख को झेलते जो तकलीफ होती वहीं हमने भी शायद सही होगी।
ख्वाहिशें हर वक्त अपने अपने हिसाब से जन्म ले ले कर स्वयं का अस्तित्व खत्म होते देखती रहती।
वो बात सच है ना कि

हजारों ख्वाहिश ऐसी की
हर एक ख्वाहिशें पे दम निकले
उम्र के कारवां के सफर में अनगिनत यादो की निशानियां दिल की झोली में समेटे अब ऐसे मोड़ पर आकर जिंदगी ने यह महसूस किया कि वह सब जो था बहुत अनमोल भी था और बेमानी भी था वह उस वक्त की जरूरत थी पर आज की जरूरत समयानुसार बदल गई है और कुछ ऐसा हो गया है कि जो मुझे नहीं मिला वह मुझे चाहिए
क्या नहीं मिला सोच कर हमारी आत्मा ने हमें यह जवाब दिया के एक इंसान हमेशा सच्ची मोहब्बत के लिए भटकता है कोई उससे रूहानी मोहब्बत करके अपनी जान तक निछावर कर दे बदले में हम भी उस पर अपनी जान निछावर करने की ताकत हिम्मत रखते हो।
और इस हिम्मत और ताकत के बदले जिंदगी मैं एक ऐसा भी मुकाम आ जाता है कि हम जिसके लिए सब कर रहे थे वह अलविदा कह चुका है।

और उसके बाद फिर वही भटकाव वही आवारगी और फिर एक तलाश जो मंजिल पाने तड़प रही होती है सुकून की चाहत में और दर्द दिल की पनाहों में शामिल हो जाते हैं।
सब कुछ है और सब के होते हुए भी ना जाने क्यों लगता है कि कोई नहीं है अपना।
एक छोटी सी चाहत और तमन्ना की मोहब्बत से खाली यह दामन इश्क प्यार मोहब्बत से भर जाए तडपती इस रूह को सुकून मिल जाए दिल में बसा जितना इश्क का दरिया है दिल के तहखाने से निकल कर सैलाब बनकर किसी की आगोश में समा जाए बस अब तो सिर्फ यही अच्छा लगता है कि हां बस खुश्क आंखों में कोई तस्वीर साकार रूप लेकर अपने आकार में आकर माटी की सोंधी सोंधी खुशबू जो पहली बारिश में होती है और उस प्यार की बारिश में मेरा तन मन जीवन प्राण सब भीग कर महक जाए।
हां हमें यह सब अच्छा लगता है जी हां यही अच्छा लगता है।
डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"

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#रानी इस विषय के प्रतियोगिता पर हमारी कुछ पंक्तियां

गीतों की इस रानी को किया गजलों ने तो सयानी है
आखर आखर जन्मा मुझसे सरगम मेरी दीवानी है।
छंद, रुबाई, दोहा ,मुक्तक सब ने मुझको घेरा है,
तुलसी, मीर से लिख्खी जाए "प्रीत"की भी तो कहानी है।

डॉ प्रियंका सोनी"प्रीत"

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प्रतियोगिता
विषय--कोरोना का कहर
एक रचना हमारी भी

🌹22 मार्च की शाम🌹

अनेकों आपदाओं ,विपदाओ
हादसों, आतंकवादी हमलों,
क्या कारगिल का युद्ध,
किया है सदा ही सामना
हमारे हिंदुस्तान ने,
ना हार तब भी मानी थी,
ना हार अब भी मानेगा।
क्या चेचक, टीवी, कालरा
और क्या अब कर लेगा
कोरोना,
मानवता ,इंसानियत,
दया, ममता, अपनेपन
का पाठ पढ़ा रहा है
आजकल यह कोरोना
22 मार्च की शाम
अजब था वह नजारा
भर गया नैनों में अश्रु की धारा,
घरों के बाहर बज रहे,
ढोल ,नगाड़े ,संख,मंजीरे
देख पाया की,
कौन-कौन रहता है
हमारे घरों के आसपास,
अनजान थे हम अब तक
सभी एक दूसरे से,
पर अब पहचानने लगे हैं आज।
माना कि कोरोना का कहर
है अति भारी और
दुनिया जहान में फैली
है यह महामारी
समझ आया इंसान को
दौलत से ज्यादा जान है प्यारी है,
घरों में बंद कीमत
पहचानी जा रही रिश्तो की सारी,
हौसला ना हारेंगे,
हम तो बाजी मारेंगे,
जी हां आखरी होगी बाजी हमारी।

डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"

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