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Lalit Rathod

Lalit Rathod Matrubharti Verified

@lalitrathod9542
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मेरे बदलने पर शहर भी मुझे बदला हुआ प्रतीत होता है, लेकिन गांव आज भी पहले जैसा है। बदलते हुए समय का असर गांव पर कभी नहीं हुआ। मुझे आज भी अपने पिता को दुकान में व्यस्त देखना और मां को दिन के तय घरेलू कार्यों में उलझे हुए देखने पर लगता है, गांव में समय आज भी ठहरा हुआ हैं। गांव के नहीं बदलने से गांव से जुड़ी स्मृति भी उन जगह पर आज भी सुरक्षित है।

शहर से गांव लौटने पर इस बात की खुशी हमेशा मेरे भीतर होती है कि मैं उन जगह पर जाकर कभी भी एक गहरी लंबी सांस लेकर अपना अतीत फिर पूरे आंनद के साथ जी सकता हूं। असल में मेरी स्मृति गांव के किसी एक जगह से नहीं जुड़ी हैं। मैं आज भी उम्र बदलने के बाद एकांत में बैठने की जगह बदल देता हूं और नया ठिकाना चुन लेता हूं। ऐसा करना ठीक वैसा है जैसे कई लोग चोरी के डर से अपने पैसे एक जगह पर नहीं रखते। आज जितनी मेरी उम्र है उतने ही गांव में खास जगह है। हर उम्र की स्मृति उस जगह पर समाहित है। अगर मुझे बचपन में लौटना होता हूं तब मैं नहर किनारे बैठने चल देता हूं। आज भी मुझे उस जगह पर बैठने से 20 साल पहले महसूस की हुई खुशबू मिलती है।

अपनी हर उम्र को अपनी खास जगह पर जाकर पूरी शिद्दत से जी लेता हूं। अब इस उम्र में मैंने ऐसी जगह चुन लिया हैं जहां पूरा गांव एक नजर में देख सकता हूं। इसमें बदलती हुई उम्र और छूटी हुई स्मृति मुझे साफ नजर आती है।

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मुंबई गए लगभग 3 साल हो चुके है, लेकिन आज भी जब भी दफ्तर से दो दिनों की छुट्टी पर होता हूं मुंबई चले जाने का हिसाब लगाने बैठ जाता हूं कि कैसे बस दो दिनों मुंबई से आया जा सकता है? मुझे आज भी अपने शहर से मुंबई जाने वाली ट्रेन देखना रोमांचकारी कार्य लगता है।जीवन का सुंदर अतीत मुंबई की सड़कों व समुद्र किनारे बिखरा पड़ा है। संबध के खत्म होने बाद भी मुझे शहर उतना ही प्रेम रहा है। अपनी अंतिम यात्रा खुद को जुहू में घंटो लिखते हुए पाया था, लेकिन अतीत को जितना लिखने का प्रयास किया वह खत्म होने के बजाय और बढ़ता चला गया। अंतत: मैंने हार मान ली है। अब मुंबई पर लिखा पूरा खत्म कर लिया है, जिसे लिख नहीं पाया अब अतीत का घर बना चुका है। अब मुंबई जाऊंगा उस अतीत के साथ वक्त बिताकर लौट आऊंगा। वह अतीत हमेशा अब से मेरा नियमित घर बन चुका हूँ। आज फिर से मुंबई की यात्रा पर हूं, लेकिन इस बार मैंने ट्रेन में जाने का हिसाब छोड़कर आसमान से होकर जाने का सोचा है।

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अक्सर मेरे निजी दोस्त कहते है मुझे दिमाग से बात करना चाहिए लेकिन यह मुझसे कभी हुआ ही नहीं। अपने सभी प्रयासों में असफल रहा हूं। अब हर लोगों से दिल से बात करना आदत में शामिल है। इस वजह से कई बार ठगा हुआ भी महसूस करता हूँ। दिल से बात करने में पूरी ईमानदारी शामिल होती है। दिल से बात करने के अपने अलग नियम है, यह नियम दिमाग से बातचीत में लागू नहीं होते। एक सच यह भी जब भी किसी से मैंने बेहद दिल से बात किया..मैंने खुद को 'प्रेम में होना' पाया है। मेरी हमेशा से एक आदत रही है..जब भी मुझे प्रेम हुआ है, मैं उसके नाम का पहला अक्षर अपने हाथों की हथेली में खोजने लगता हूं। आपको आश्चर्य होगा हाथों की कई लकीरों के बीच मुझे वह पहला अक्षर मिल ही जाता है, लेकिन जब भी इसे दिखाने अपना हाथ उस व्यक्ति की ओर आगे बढ़ाता हूं वह अक्षर हाथों में होकर भी उसे नजर नहीं आता।

मैं उसे कभी बता ही नहीं पाया की तुम्हारा नाम का पहल अक्षर मेरे हाथ में है। यह बहुत पहले से मेरे हाथों में गुदा हुआ था, लेकिन तुमसे मिलने के बाद इसे अपने हाथों में देखा है। इसे एक तरह का पागलपन भी समझता हूं। एक सच यह भी कुछ अक्षरों ने बदलते समय के साथ अपने रूप भी बदल दिए है कभी हाथों में अग्रेजी का 'ए' शब्द नजर आता था अब उसमें ‘एम' शब्द की आकृति बनी हुई दिखाई पड़ती। यह केवल मुझे अपनी आंखो से दिखाई पड़ता है। इसके अपने अलग राज है, जो दिलों से जुड़े है।

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इतनी लंबी बातचीत के बाद अब जब अपनी आंखे बंद करता हूं तो कानों में तुम्हारी ही आवाज ही गुंज रही होती हैं। अक्सर मुझे इस बात का भी भ्रम होता है की तुम मेरे कानों में धीमी आवाज में अब भी कुछ कह रही हो। मैं तुम्हारी बाते ध्यान से सुनता हूं इस उम्मीद में की तुम अब भी मेरे साथ हो मेरे पास हो..❤️

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अपनी ख़ुशियों में अपना हक़ बनाए रखना।
५-०३-२०२२

तुम इतनी सुंदर भी नहीं हो कि इतना अकड़ो लेकिन हाँ तुम मेरी लिए दुनिया में सबसे सुंदर हो। -कहीं पढ़ा हुआ।

भरोसा करने की लत बड़ी कमीनी होती है।- सुजाता।

मेरे लिए दिन व्यक्ति के सामान है। सूर्य का उदय होना उस व्यक्ति का दिन में प्रवेश करना है। जब भी यात्रा में होता हूं उस दिन को किसी व्यक्ति का नाम दे देता हूं। बीते दिनों देवपूर में बिताए दिन का नाम मैंने आस्था रख दिया। अब यात्रा में अकेला नहीं था। सुबह से दोपहर और फिर शाम मैं उस नाम के साथ बना रहा। अक्सर सारा दिन जीने के बाद शाम के वक्त दिन को अलविदा नहीं कहता...व्यक्ति को कहता हूं। वर्षों बाद बिताए दिन को तारीख से नहीं व्यक्ति के नाम से याद करता हूं। अपना हर दिन शिद्दत से जीता हूं इसलिए रात में खुद को अकेला भी महसूस करता हूं। मेरी हर रात बिताए हुए दिन की यादों के साथ होती है और हर सुबह दिन के रूप में एक नए व्यक्ति के साथ। यह मेरी बनाई हुई दुनिया है, जिसे हर दिन जीता हूं। #devpur

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लिखना चीजों को खूबसूरत बनाने की एक प्रक्रिया है।मेरा घर वास्तव में खूबसूरत है।इसे बार-बार साफ करना हमेशा जवान रखने जैसा है।अक्सर दोस्तों से कहता हूं मेरा घर मेरी तरह जवान है क्योंकि यहां जाले नहीं,धूल नहीं।सारी चीजें व्यवस्थित हैं।जब भी घर पर लिखने के बाद उसे पढ़ता हूं मुझे अपना ही घर और खूबसूरत नजर आता है।

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